Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[६४६]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[भकारादि
मिश्रित आठां मूत्र १६ सेर लेकर सबको एकत्र । इसे सेवन करानेसे समस्त उपदंश नष्ट हो मिलाकर पकावें और घृतमात्र शेष रहने पर छान लें। | जाते हैं । इसके सेवनसे ग्रहोन्माद, कुष्ठ और ज्वर नष्ट
(४८८१) भृाराजघृतम् होता है।
| (र. र.; ध. व. । स्वरभेदा.;च. द.। स्व.भेदा.१३) (४८८०) भूनिम्बाचं घृतम्
भृङ्गराजामृतावल्लीवासकदशमूलकासमईरसैः । (भा. प्र.; नपुंसकामृता.; यो. र. । उपदंशा.; वृ. | यो. त. । त. ११७; धन्वन्त.; र. र.; भै. र.;
सर्पिः सपिप्पलीकं सिद्धं स्वरभेदकास
जिन्मधुना ॥ वं. से. । उपदंशा.) भूनिम्बनिम्बत्रिफलापटोल
(भृङ्गराजप्रभृतीनां चतुर्गुणः काथः पिप्पल्याः करञ्जजाती खदिरासनानाम् ।
पादिकः कल्कः।) सतोयकल्कैतमाशुपकं
काथ---भंगरा, गिलोय, बासा, दशमूलकी सर्वोपदंशापहरं पदिष्टम् ॥
प्रत्येक ओषधि और कसैांधी समान भाग मिश्रित काथ--चिरायता, नीमकी छाल, हर्र, बहेड़ा, |
४ सेर लेकर सबको अधकुटा करके ३२ सेर आमला, पटोल ( परवल ), करञ्जके बीज, चमेलीके
पानीमें पकावें और ८ सेर पानी शेष रहने पर पत्ते ( पाठान्तरके अनुसार आमला ), खैरसार |
छान लें। और असना वृक्षकी छाल समान भाग मिश्रित २ । कल्क--२० तोले पीपलको पत्थर पर सेर लेकर सबको भधकुटा करके १६ सेर पानीमें पीस लें। पकावें और ४ सेर पानी शेष रहने पर छान लें ।
विधि-२ सेर घीमें उपरोक्त काथ और कल्क---उपरोक्त ओषधियां समान भाग
| कल्क मिलाकर पकावें । जब काथ जल जाय तो मिश्रित ६ तोले ८ माशे लेकर पीस लें। विधि--१ सेरे घीमें उपरोक्त काथ और
| घीको छान लें। कल्क मिलाकर पकावें और जब काथ जल जाय | इस घृतमें शहद मिलाकर सेवन करनेसे तो धीको छान लें।
__ स्वरभेद और खांसी नष्ट होती है। इति भकारादिघृतप्रकरणम् ।
१-धात्रीति पाठान्तरम् ।
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