Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[ ६५२]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[भकारादि
केशशाते शिरोदुःखे मन्यास्तम्भे हनुग्रहे । । (४९००) भृजराजतैलम (११) (स्वल्प) अकालपलिते चैव दारुणे चैव दारुणे ॥ । (भै. र.; वृ. मा. । क्षुद्ररो.; ग. नि. । तैला.; दन्तकर्णाक्षिरोगेषु नस्यमेतत्मदापयेत् । वृ. यो. त. । त. १२७; र. र. । क्षुद्र.; नस्यप्रयोगान्मासेन क्षीरानप्रतिभोजिनः ।। व. रो.; च. द. । क्षुद्ररो.) मुकुश्चिताग्रान् केशांश्च स्निग्धान्कुर्यादहूंस्तथा। अरजस्त्रिफलोत्पलशारिखालित्ये सेन्द्रलुप्ते च तेलमेतद्यथाऽमृतम् ॥ ।
लौहपुरीषसमन्वितकारि । जल प्रायः स्थानमें ( नदी आदिके किनारे) | तैलमिदं पच दारुणहारि उत्पन्न हुवा उत्तम पुष्ट भंगरा लाकर उसे धोकर कुश्चितकेशघनस्थिरकारि ॥ कूटकर ८ सेर रस निकालें। तदनन्तर २ सेर नैलमें यह रस और निम्न लिखित कल्क मिलाकर
भंगरा, हर्र, बहेड़ा, आमला, अनन्तमूल, पकावें । जब स्वरस जल जाय तो तैलको छानलें।
मण्डूर और आमकी गुठलीका कल्क २० तोले, तेल
२ सेर तथा पानी ८ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकल्क-मजीठ, पद्माक, लोध, सफेद चन्दन,
कर पकायें और जब पानी जल जाय तो तेलको गेरु, खरै टी, हल्दी, दारुहल्दा, केसर, देवदारु,
छान लें। फूलप्रियङ्गु, मुलैठी, प्रपौण्डरीक (पुण्डरिया), कमल, कूठ, तगर, उर्द, सरसों, अगर, नागरमोथा, छार
इसे शिरमें लगाने से दारुण नामक शिरो रोग छरीला और कचूर ५-५ ताले लेकर सबको
नष्ट होता और बाल धुंघराले, घने और मजबूत हो दूधमें पीस लें।
जाते हैं। इसकी नस्य लेनेसे बालेका गिरना, शिरशूल,
(१९०१) भृङ्गादितैलम् मन्यास्तम्भ, हनुग्रह, अकाल पलित, भयंकर दारुण
(वृ. नि. र. । बालरोगा.) नामक शिरोरोग, दन्तरोग, कर्णरोग और नेत्ररोग | स्वरसे भृक्षाणां तथैव हयगन्धिका । नष्ट होते हैं।
तैलं वचां च संयोज्य पचेदभ्यअने शिशोः ।। ___यदि १ मास तक इसकी नस्य ली जाय ।
__भंगरेका स्वरस ८ सेर, तिलका तेल २ सेर और केवल दूधपर रहा जाय तो खालित्य और तथा असगन्ध और बचका कल्क ५-५ तोले लेकर इन्द्रलुप्त नष्ट होकर धने, स्निग्ध और धुंधराले बाल सबको एकत्र मिलाकर पकावें । जब रस जल जाय निकल आते हैं।
तो तेल को छान लें। . नोट-भै. र. और वृ. मा. में देवदारु तथा । इसे बालकके शरीरपर मलने से मुखमण्डिका कूठ से लेकर कचूर तककी ओषधियां नहीं लिखीं। ' ग्रहजनित विकार नष्ट होते हैं।
इति भकारादितैलपकरणम् ।
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