Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(४८४१): भूमिकूष्माण्डादियोगः ( व. से. । स्त्री.; यो. र. । स्तनदोष . ) भूमिकूष्माण्डमूलं पिबति क्षीरेण या नारी । सशर्करेणैव पुष्टा त्यतिशयदुग्धवती सा भवति ॥
जो स्त्री बिदारीकन्दके चूर्ण में खाण्ड मिलाकर दूधके साथ सेवन करती है उसका शरीर पुष्ट हो जाता है और उसके स्तनोंमें खूब दूध आता है । (४८४२) भूम्यामलक्यादिचूर्णम् ( यो. र. । प्रदर.; वृ. नि. र. । स्त्रीरोगा; यो . त. । त. ७४; व. से. । स्त्री. ) भूम्यामलकमूलं तु पीतं तण्डुलवारिणा । द्वित्रैरेव दिनैर्नार्याः प्रदरं दुस्तरं जयेत् ॥
भारत- - भैषज्य रत्नाकरः ।
भुईआमलेकी जड़का चूर्ण चावलेांके पानीके साथ पीनेसे २ - ३ दिनमें ही भयङ्कर प्रदर रोग नष्ट हो जाता है ।
(४८४३)भृङ्गराजरसायनम् (१)
(व. से. । रसायना. )
सम्यग् भृङ्गरजः क्षुण्णं वस्त्रपूतं प्रयत्नतः । क्षीरन्तु समभागेन मासमेकं नियोजयेत् ॥ वर्षेनान्धो गमनरिहतो मत्तमातङ्गगामी । मूको वाग्मी श्रवणरहितो दूरशब्दानुभावी ॥ षण्ढः पुत्री भवति पलितो नीलजीमूतकेशः । जीर्णादन्ताः पुनरपि दृढा वज्रदेहा भवन्ति ॥ १---बं. से. में भूम्यामलकी के बीज लिखे हैं और यह पंक्ति अधिक लिखी है
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मेढूंग रुधिरस्रावं रक्तातिसार मुल्बणम्' अर्थात् यह योग मूत्रमार्गसे होने वाले रक्तस्राव और रक्तातिसारको भी नष्ट करता है ।
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[भकारादि
उत्तम भंगरेको कूटकर कपड़छन चूर्ण
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बनावें |
इसे १ मास तक समान भाग दूधके साथ सेवन करें।
यदि इसे १ वर्ष पर्यन्त सेवन किया जाय तो अन्धा और लूला मनुष्य मदमत्त हाथीके समान चलने लगता है, गूंगा बोलने लगता है, बहिरा दूरके शब्दको भी सुन सकता है, नपुंसकको पुत्र प्राप्त हो जाता है, यदि बाल सफेद हो गये हों तो वे काले हो जाते हैं और कमजोर दांत पुनः दृढ़ जाते हैं । (४८४४) भृङ्गराजरसायनम् (२) ( वृ. मा. । रसायना. ) असिततिलविमिश्रान्पल्लवान्भक्षयेद्यः
सततमिह पयोशी भृङ्गराजस्य मासम् । भवति स चिरजीवी व्याधिभिर्विप्रयुक्तो
भ्रमरसदृशकेशः कामचारी मनुष्यः ॥ भंगरेके पत्ते और काले तिल समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे १ मास तक सेवन करने और केवल दूध पर रहनेसे मनुष्य रोगरहित और दीर्घ जीवी हो जाता है और उसके बाल भर के समान काले हो जाते हैं ।
(४८४५) भृङ्गराजादिचूर्णम् (१) ( यो. चि. म. । अ. २ चूर्णा.; भै. र. । रसायना.) सूक्ष्मीकृतं भृङ्गनृपस्य चूर्ण कृष्णैस्तिलैरामलकैश्च सार्द्धम् । सितायुतं भक्षयता नराणां
न व्याधयो नैव जरा न मृत्युः ॥
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