Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
त- भैषज्य रत्नाकरः । भारत
[ ६३२ ]
हुवे नीमके ताजे पत्ते २ भाग लेकर सबको गोमूमें पीसकर गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें ।
इनमें से एक एक गोली मुंह में रखकर सोनेसे हिलते हुवे दांत दृढ़ हो जाते हैं । हिलते हुवे दांतोंके लिये इससे उत्तम और कोई भी औषध नहीं है।
(४८४८) भल्लातकमोदकः (व. से.; । उदरा; वृ. यो. त. । त. १०५; बृ.नि. र.; वृ. मा.; ग. नि. । उदररो.) भल्लातकाऽभयाजाजीगुडेन सह मोदकः । सप्तरात्रान्निहन्त्याशु प्लीहानमतिदारुणम् ॥
शुद्ध भिलावा, हर्र और जीरेका चूर्ण १-१ भाग तथा गुड़ ६ भाग लेकर सबको एकत्र कूटकर या चूर्णको गुड़की चाशनीमें मिलाकर गोलियां बनावें |
इन्हें सेवन करनेसे सात दिनमें भयङ्कर तिल्ली भी नष्ट हो जाती है ।
( मात्रा - - १ तोला । अनुपान जल । ) (४८४९) भल्लातकवटक:
( हा. सं. । स्था. ३ अ. ११ ) त्रिकटुकमगधानां मूलचित्रं विडङ्गं समतुलितममीषां तुल्यभल्लातकानि । सकलमिह समन्तादेकतः सम्प्रचूर्ण्य द्विगुणतुलितमात्रं योजनीयो गुडस्तु ॥ सकलमपि विकु स्निग्धभाण्डे निधाय प्रतिदिनमपि सेव्यं चाक्षमात्रं सुधीरैः । गुदजजठररोगं शूलगुल्मान् क्रिमींस्तु । जनयति वडवाग्नि हन्ति पाण्डु क्षयं वा ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ भकारादि
सेठ, मिर्च, पीपल, पीपलामूल, चीतेकी जड़ और बायबिडंगका चूर्ण १ - १ भाग, शुद्ध भिलावेकी मज्जा ६ भाग और गुड़ २४ भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर अच्छी तरह कूटकर चिकने पात्र में भरकर रख दें ।
इसे १ तोलेकी मात्रानुसार सेवन करनेसे अर्श, उदररोग, शूल, गुल्म, कृमि, पाण्डु और क्षयका नाश होता तथा अभिकी वृद्धि होती है। (४८५०) भल्लातकहरीतकी
( वृ. नि. र. । प्रहण्य. ) भल्लातकहरीतक्या पाठा कटुकरोहिणी । यवानी जाजिकुष्ठं च चित्रकोतिविषावचा ॥ कचोरं पैौष्करं मूलं हिङ्गु इन्द्रयवं तथा । शुण्ठी सैौवर्चलं तुल्यं गवां मूत्रेण पेषयेत् ॥ छायाशुष्का च वटिका माषमात्रं च भक्षयेत् । पिबेदुष्णोदकं पश्चात्कफोत्थानर्शसाञ्जये ||
शुद्ध भिलावा, हर्र, पाठा, कुटकी, अजवायन, जीरा, कूठ, चीता, अतीस, बच, कचूर, पोखरमूल, हींग, इन्द्रजौ, सेठ और सचल ( काला नमक ) समान भाग लेकर यथा विधि चूर्ण बनाकर उसे गोमूत्र में घोटकर १-१ माशेकी गोलियां बनाकर छाया में सुखा ले 1
इन्हें उष्ण जलके साथ सेवन करने से कफज अश नष्ट होती है ।
भस्मवटी
प्रकरण में देखिये |
For Private And Personal Use Only
भागोत्तरगुटिका
रसप्रकरण में देखिये ।