Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[ ६३४]
(४८५३) भुजङ्गीगुटिका
( वृ. नि. र. । वातव्याधि. ) तेजोहा प्रस्थमेकं पयसि गजगुणे पाकयुक्त्या विपाच्य व्योषं पथ्या शताहा कमिरिपुमनल ग्रन्थिकं चाजमोदाम् उग्रा कुष्ठाश्वगन्धौ सुरतरुममृतं । पालिकानि दद्यात्सर्वान्वातान्वटीयं घृतमधुसहिता नास्ति भावान्करोति ।। १ सेर तेजबलके चूर्णको ८ सेर गोदुग्धमें पावें । जब खोया (मावा) हो जाय तो उसमें सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, सोया, बायबिडंग, चीता, पीपलामूल, अजमोद, बच, कूठ, असगन्ध और देवदारु का चूर्ण तथा घी ५-५ तोले मिलाकर गोलियां बना लें ।
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( मात्रा - ६ माशे । )
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भूनिम्बादिगुटी प्रकरण में देखिये
- भैषज्य रत्नाकरः ।
इन्हें घी और शहदके साथ सेवन करनेसे समस्त वातव्याधियां नष्ट होती हैं ।
भारत
भेकराजरसादिमोदक: रसप्रकरण में देखिये
(४८५४) भेदिनीवटी
( भै. र. । उदरा. र. का. धे. । उदर.; रसे. चि. म. । अ. ९)
त्रिकण्टकस्नु पयसा पिप्पल्या वटिकाकृता ।
भेदनी या सिद्धिमता महागदनिषूदनी ॥
गोखरू और पीपलका चूर्ण तथा स्नुही (सैंड) का दूध समान भाग लेकर तीनों को एकत्र घोटकर (१ - १ माशेकी) गोलियां बना लें ।
जाते हैं ।
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इनके सेवन से विरेचन होकर उदररोग नष्ट हो
रसप्रकरण में देखिये
भैरवीगुटिका
[ भकारादि]
भैरवीवटी
प्रकरण में देखिये
भोगपुरन्दरीगुटिका
रसप्रकरण में देखिये
(४८५५) भ्रमनाशिनीगुटी
(व. से. । मूर्च्छा. )
इति भकारादिगुटिकामकरणम् ।
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कृष्णाशताद्दाशुण्ठीनां साभयानां पलं पलम् । गुडस्य षट्पलान्येषा गुटिका भ्रमनाशिनी ॥
पीपल, शतावर, सांठ और हर्रका चूर्ण १-१ पल ( ५-५ तोले ) तथा गुड़ ६ पल लेकर सबको एकत्र कूटकर गोलियां बनावें ।
इनके सेवन से भ्रम नष्ट होता है !
( मात्रा - ६ माशेसे १ तोले तक । )