Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[५६६] भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[बकारादि बिडादिरोगदारकं गदार्तिनां च तारकं । (४६२५) विभीतकफलचूर्णम् घनेन जीयते धरा कथं न जानते नराः॥
(ब. से. । अति.) बिडनमक, चीतामूल, दोनों जीर, अजवायन, विभीतकफलं दग्धं इन्याल्लवणसंयुतम् । हर्र, सांठ, मिर्च, पीपल, धनिया, सञ्चल ( काला
महान्तमप्यतीसारं चक्रपाणिरिवाऽसुरान् ।। नमक ), दालचीनी, तिन्तडीक, अजमोद और
___ बहेड़ेके फलेकी भस्म में सेंधा नमक मिलाअम्लबेत १-१ भाग तथा बायबिडंग सबके
| कर सेवन कराने से प्रवृद्ध अतिसार भी नष्ट हो बराबर लेकर कूट छानकर चूर्ण बनावें । ___ यह चूर्ण अत्यन्त पाचक है । आश्चर्य है
| जाता है। कि मनुष्य यह नहीं जानते कि इसके सेवन से तो |
__ ( मात्रा--३ माशे । दिनमें २-३ बार ।) पृथ्वी भी पच सकती है, भोजनकी तो बात ही । (४६२६) बिभीतकफलचूर्णम् क्या है ?
(रा. मा. । रक्तपित्ता.) (४६२४) बिभीतकचूर्णम्
मध्वाक्तमक्षफलकल्पितचूर्णकर्ष(हा. सं. । स्था. ३ अ. १२)
मुधंसिकां हरति भुक्तवताऽवलीढम् । विभीतकं घृतभृष्टं चूर्ण कृत्वा भिषग्वरः। वासं च सन्ततविकाशविकारभावं भावितं चाटरूपस्य दलानां च रसेन तु ।।
दुःस्थीकृतोदरमिदं सततं नियुक्तम् ॥ हितं चार्कपत्रैस्तु कर्दमेन तु लेपयेत् ।। बहेड़ेके फलकी छालका चूर्ण १। तोलेकी स्विनमनौ मुखे धार्य कासं नाशयते ध्रुवम् ॥ मात्रानुसार शहदमें मिलाकर भोजनके बाद सेवन
बहेड़ेके फलोको घीमें भूनकर चूर्ण बनावें | करनेसे खांसी और श्वासका नाश होता है। और फिर उसे १ दिन बासेके पत्तोंके रसमें । (व्यवहारिक मात्रा--३ माशे । ) घोटकर उसका गोला बना लें एवं उसे आकके । (४६२७) विभीतकादिचूर्णम् पत्तों में लपेटकर उस पर आध अंगल मोटा
(वृ. नि. र. । कास.) मिट्टीका लेप कर दें तथा उसे सुखाकर कण्डोंकी मन्दाग्नि में स्वेदित करें। जब ऊपर वाली मिट्टीका दो भागौ च विभीतक्या भागैकं पिप्पलीयतम। रंग लाल हो जाय तो गोलको अग्निसे निकालकर सूर्ण मधुयुतं लेह्यं कासरोगहरं परम् ॥ ठण्डा करके उसके ऊपरकी मिट्टी छुड़ा दें और | २ भाग बहेड़े और १ भाग पीपलका चूर्ण भीतरसे बहेड़े के गोलेको निकालकर पीस लें। | एकत्र मिलाकर शहदके साथ चाटने से खांसी नष्ट
इसमें से ज़रा ज़रा सा चूर्ण मुंहमें रखकर | होती है । रस चूसनेसे खांसी अवश्य नष्ट हो जाती है। । ( मात्रा-२-३ माशे ।)
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