Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[६२४]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[भकारादि
शुद्ध भिलावेके चूर्णको दही या इमलीके पानी । इसे घीके साथ मिलाकर पीने या भोज्य के साथ सेवन करनेसे क्रिमिरोग नष्ट हो जाता है । पदार्थों में मिलाकर खानेसे हृद्रोग, पाण्डु, ग्रहणी, (४८२३) भल्लातकादिचूर्णम् (४) गुल्म, उदावर्त और शूल नष्ट होता है । (ग. नि. । अर्श.; हा. सं.१ । स्था. ३ अ. ११; ( मात्रा-१-१॥ माशा । )
वृ. नि. र.; यो. र.२ । आमवाता.) । (४८२५) भल्लातकाद्यं चूर्णम् तिलभल्लातकं पथ्या गुडश्चेति समांशकम् ।
(ग. नि. । कुष्ठा.) दर्नामश्वासकासन्नं प्लीहपाण्डुज्वरापहम् ॥ भल्लातको मार्कवशपुप्पी तिल, शुद्ध भिलावा, हर्र और गुड़ १-१ ।
ब्राह्मीवचाबाकुचिकाविडङ्गम् । भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
फलत्रयं पिप्पलीका च चव्यं यह चूर्ण अर्श, श्वास, खांसी प्लीहा (तिल्ली), पाण्डु और ज्वरको नष्ट करता है ।
कुष्ठानि चूर्ण सघृतं निहन्ति । (४८२४) भल्लातकाद्यः क्षार:
भिलावा, भंगरा, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बच, . (ग. नि. । ग्रहणी.; यो. र. व. से.; वृ. नि..
बाबची, बायबिडंग, हर्र, बहेड़ा, आमला, पीपल र.। ग्रहण्य.; च. सं. । चि. अ. १९ ग्रहण्य.) । और चव समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । भल्लातकं त्रिकटुकं त्रिफलां लवणत्रयम् । इसे घृतके साथ. सेवन करनेसे कुष्ठ नष्ट अन्तर्धमं द्विपलिकं गोपुरीपाग्निना दहेत् ॥ | होता है । स क्षारःसपिषा पीतो भाज्य वाऽप्यवाणतः । (४८२६) भल्लातकामृतम् हृद्रोगपाण्डुग्रहणीगुल्मोदावर्तशूलनुत् ।। भिलावा, सांठ, मिर्च, पीपल, हरे, बहेड़ा,
(वृ. नि. र. । ग्रहण्य.) आमला, सेंधानमक, सञ्चल ( काला नमक ) और | गुडूचीलागलीशृङ्गीमुण्डीगुञ्जा च केतकी। बिड लवण १०-१० तोले लेकर सबको एक | षण्णां पत्ररसैध बालभल्लातबीजकं ॥ हाण्डीमें भरकर उसके मुखको बन्द कर दें और फिर दिनैकं मर्दयेद्गाद निष्काधं भक्षयेत्सदा । उसे गायके गोबरकी अग्निपर इतना पकावें कि
भल्लातामृतयोगोयं सर्वार्थान् पित्तजान् जयेत् ॥ सब चीजोंकी भस्म हो जाय । तदनन्तर हाण्डीके स्वांगशीतल होनेपर उसमेंसे औषधको निकालकर
कच्चे भिलावोंको गिलोय, कलियारी, काकपीस लें।
| डासिंगी, गोरखमुण्डी, गुञ्जा ( चैटली) और १-हारीत संहितामें इसके गुण इस प्रकार लिखे केतकी; इन छः ओषधियोंके पत्तों के रसेकी हैं-इसके सेवनसे अर्श, प्रमेह, शूल और खांसी नष्ट | १-१ भावना देकर चूर्ण बना लें। होती है ।
इसे २ माशेकी मात्रानुसार सेवन करनेसे २-यू. नि. र. और यो. र. में इसे आमवात
आमवात पित्तज अर्श नष्ट हो जाती है। और कटिशल नाशक लिखा है।
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