Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[६१६]
भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[भकारादि
भिलावा, मुलैठी, हरे, दशमूल और सांठका | भल्लातकामृताशुण्ठीदारुपथ्यापुनर्नवाः । काथ पीनेसे कफप्रधान तमक श्वास तथा वातज पश्चमूलीद्वयोन्मिश्रा उरुस्तम्भनिवर्हणाः॥ श्वास नष्ट होता है।
___मिलाया, गिलोय, सेांठ, देवदारु, हर्र, पुन(४७८३) भल्लातकादिक्काथः (२) । नवा ( बिसखपरा ) और दशमूलका काय पीनेसे ( ग. नि.; रा. मा.; वृ. नि. र. । ऊरुस्तम्भ.)
ऊरुस्तम्भ रोग नष्ट होता है। भल्लातकोपकुल्यातन्मूलैः साधितं पिबन्नम्भः।
(४७८६) भार्यादिक्काथ: (१) उरुस्तम्भादचिराद्धोरादपि मुच्यते नियतम् ॥
( ग. नि. । ज्वरा.) भिलावा, पीपल और पीपलामूलका काथ
भार्गी पथ्या वचा मुस्ता हरिद्रा च हरीतकी। पीनेसे कष्ट साध्य ऊरुस्तम्भ भी अवश्य शीघ्र ही
मधुयष्टीपर्पटको काथः पित्तकफज्वरे ॥ नष्ट हो जाता है।
___ भरंगी, हर्र, बच, नागरमोथा, हल्दी, हरे,
मुलैटी और पित्तपापड़ेका काथ पित्तकफज्वरको (४७८४) भल्लातकादियोगः (१)
नष्ट करता है। ( ग. नि. । बाजीकरणा.)
(हर्र २ भाग और अन्य सब चीजें १-१ भल्लातकैश्चतुर्भिश्च गोदुग्धस्याढकं शृतम् । भाग लेनी चाहिये । ) पीतं करोति वृषतां सुजीर्णस्यापि देहिनः॥ । (४७८७) भार्यादिकाथः (२) उचटाचूर्णमप्येवं शतावर्याश्च योजयेत् ॥
(भै. र.; वृ. नि. र. । ज्वरा.) भिलावे ४ नग, गायका दूध ४ सेर और | भार्गीगुडूचीघनदारुसिंहीपानी १६ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर
शुण्ठीकणापुष्करजः कषायः । पकावें जब पानी जल जाय तो दूधको छान लें । | ज्वरं निहन्ति श्वसनं क्षिणोति यथाशक्ति यह दूध सेवन करनेसे जीर्ण मनु
- क्षुधां करोति प्ररुचिं तनोति ॥ ष्य भी बलवान और वीर्यवान हो जाता है।
। भरंगी, गिलोय, नागरमोथा, देवदारु, कटेली,
सेठ, पीपल और पोखरमूलका काथ पीनेसे ज्वर इसी प्रकार उटङ्गणके बीजोंका चूर्ण तथा
और श्वास नष्ट होते हैं तथा क्षुधा और अग्निशतावर का चूर्ण सेवन करनेसे भी बलवीर्यकी
की वृद्धि होती है। वृद्धि होती है।
। (४७८८) भाादिक्काथः (३) (४७८५) भल्लातकादियोगः (२)
(भै. र.; धन्व. । ज्वरा. ) (ग. नि.; वृ. मा.; वृ. नि. र.; व. से.; ध. व. भार्थब्दपर्पटकपुष्करशृङ्गवेरभा. प्र. । ऊरुस्तम्भा.)
पथ्याकणादशमूलकृतः कषायः।
For Private And Personal Use Only