Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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कपायप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[६२१]
कायोऽनिल श्लेष्महरो वदन्ति । (४८१०) भूनिम्बादिसप्तका सूर्यों यथा नाशयतेन्धकारम् ॥
(ग. नि. । मसूरिका.) चिरायता, नागरमोथा,कुटकी, गिलोय, धमासा, | भूनिम्बनिम्बविश्वापर्पटहीबेरधान्यवरैः। पित्तपापड़ा, और सांठ समान भाग लेकर काथ बनावें। | काथः प्रातः पीतो विनिहन्ति सकष्टां शीतलीम् ॥ यह काथ वातकफ ज्वरको इस प्रकार नष्ट
चिरायता, नीमकी छाल, सेठ, पित्तपापड़ा, कर देता है जैसे अन्धकारको सूर्य ।
सुगन्धबाला, धनिया और बासेका काथ बनाकर (१८०८) भूनिम्बादिकाथः (८)
प्रातःकाल सेवन करनेसे दुखदायी शीतला नष्ट हो
जाती है। (यो. र.; व. से. । विस्फोटा.; वृ. यो. त.। त. १२५)
(४८११) भूनिम्बाद्यष्टादशाङ्गकाथ: भूनिम्बनिम्बवासाथ त्रिफलेन्द्रयवासकाः।
(भै. र. । ज्वरा.; हा. सं.। स्था. ३ अ. २; पिचुमन्दः पटोली च काथमेषां सशर्करम् ॥ यो. त. । ज्वर. यो. चि. म. | अ. ४ पीत्वा विमुच्यते नूनं कफविस्फोटकानरः ।।
काथा.; ग. नि. । ज्वरा.) चिरायता, नीमकी छाल, वासा (अडूसा),
भूनिम्बदारुदशमूलमहौषधाब्द
तिक्तेन्द्रबीजधनिकेमकणाकषायः । हरे, बहेड़ा, आमला, इन्द्रजौ, जवासा, नीमकी छाल
तन्द्रामलापकसनारुचिदाहमोहऔर पटोल ( परवल ) समान भाग लेकर काथ | बनावें।
__श्वासादियुक्तमखिलं ज्वरमाशु हन्ति ॥ ___ इसमें खांड मिलाकर पीनेसे कफज विस्फोटक
चिरायता, देवदारु, दशमूल, सोंठ, नागर
मोथा, कुटकी, इन्द्रजौ, धनिया और गजपीपल रोग अवश्य नष्ट हो जाता है। (नीमकी छाल २ बार आई है इस लिये २
समान भाग लेकर काथ बनावें। भाग लेनी चाहिये और अन्य पदार्थ १-१ भाग।)
___ यह काथ तन्द्रा, प्रलाप, खांसी, अरुचि, (४८०९) भूनिम्बादिकाथ: (९)
दाह, मोह और श्वासादि उपद्रव युक्त समस्त ज्वरों (वं. से. । मसूरिका.)
को नष्ट करता है। भूनिम्बमुस्तकं वासा त्रिफलेन्द्रयवासकम् । । (४८१२) भृगराजरसायनम् पिचुमन्दं पटोलश्च सक्षौद्रं योजितं हितम् ॥ । (वृ. मा. । रसायना.; यो. त. । त. ७९)
चिरायता, नागरमोथा, बासा, हर्र, बहेड़ा, | ये मासमेकं स्वरसं पिबन्ति आमला, इन्द्रजौ, जवासा, नीमकी छाल और पटोल दिने दिने भृङ्गरजः समुत्थम् । ( परवल ) के काथमें शहद मिलाकर पीना मसू- | क्षीराशिनस्ते बलवर्णयुक्ताः रिका में हितकर है।
समाः शतं जीवितमाप्नुवन्ति ।
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