Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[ ६१२ ]
पानी ४ सेर | सबको एकत्र मिलाकर पकावें । जब पानी जल जाय तो स्वच्छ वस्त्रमें छान लें । ) (४७७१) बिल्वयोग:
- भैषज्य रत्नाकरः ।
भारत
(४७७२) बिल्वशलाटुप्रयोग: ( रा. मा. । अर्श.)
( व. से. । ग्रहण्य. )
स्विन्नानि बालबिल्वानि खादेत्क्षौद्रेण मानवः । तक्रेणाऽनलगर्भेण सार्द्धं तद् ग्रहणीं जयेत् ॥ कच्ची बेलगिरीको सिजाकर शहद में मिला | कर चित्रक चूर्ण मिश्रित तक्रके साथ सेवन करने से ग्रहणी रोग नष्ट होता है।
यः सततं विल्वशला भोजी
रक्तार्शसां नाशमसौ करोति । कृष्णैस्तिलैर्मिंश्रितमत्ति यो वा
हैयङ्गवीनं सतताभियुक्तः ॥
नित्य प्रति कच्ची बेल खानेसे अथवा काले तिल गायके नवनीत में मिलाकर सेवन करनेसे रक्ताका नाश हो जाता है ।
(४७७३) बिल्वादियवागू
( व. से. 1 ग्रहण्य. ) वाल बिल्ववलाशुण्ठीधातकीमुस्तधान्यकैः । कषायैः साधिता हन्ति यवागृहणीगदम् ।।
कच्ची बेलगिरी, खरैटी, सोंठ, धायके फूल इति
[ बकारादि
नागरमोथा और धनियेके काथमें यवागू बनाकर पिलाने से ग्रहणी रोग नष्ट होता है । (४७७४) बिसादिपरिषेकः
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(वै.म.र. प. १६)
सविसं सविदारि सोत्पलं ससिताकं
मधुकेन समं त्वापयः परिषे
सकशेरुचन्दनम् ।
गामाञ्जयेत् ॥
कमलकन्द (भिसण्डा), बिदारीकन्द, नीलोत्पल, मिश्री, कसेरु, लालचन्दन और मुलैठी के साथ बकरीका दूध पकाकर उसे नेत्रोंपर सींचने (बन्द आंख पर उसकी बारीक धार डालने) से नेत्र रोग (नेत्राभिष्यन्दादि) नष्ट होते हैं ।
( ओषधियां ५ तोले, दूध १ सेर, पानी ४ सेर । एकत्र मिलाकर पकायें । जब पानी जल जाय तो दूधको छान लें 1 )
(४७७५) बीजपूरयोगः
( भा. प्र. 1 म. खं. मुखरो. ) आस्वादिता सकृदपि मुखगन्धं सकलमपनयति । स्वगबीजपूरफलजा पवनमपाच्यं वारयति ॥
कारादिमिश्रप्रकरणम् ।
यदि बिजौरे फलका छिलका एक बार भी चबा लिया जाय तो मुखको दुर्गन्ध नष्ट हो जाती है तथा अपान वायु शुद्ध हो जाता है ।
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