Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[बकारादि
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अथ बकारादिमिश्रप्रकरणम् ।
(४७६०) बकुलप्रयोगः
| घावमें लगानेसे नाडीव्रण (नासूर) शीघ्र ही नष्ट हो (वै. जी. । वि. ४)
जाता है। सोयं सुगन्धिमुकुलो वकुलो विभाति (४७६३) बदरीमृलयोगः वृक्षाग्रणीः प्रियतमे मदनकबन्धुः।
(रा. मा. । स्त्री.) यस्य त्वचैव चिरवितया नितान्तं
स्यान्मूलमाराभृगालिकायाः दन्ता भवन्ति चपला अपि वज्रतुल्याः॥
सञ्चय दन्तैधृतमास्यमध्ये । मौलसिरीकी छालको दीर्घकाल तक: चबाने से
स्तन्यावह वासरसप्तकेन हिलते हुवे दांत भी वज्रके समान दृढ़ हो जाते हैं।
स्तन्योत्यकीटक्षयकारणं च ॥ (४७६१) यकुलबीजचर्वणम्
छोटी बेरीकी जड़को दांतों से चबाकर मुखमें (रा. मा. । मुखरो.)
रखकर उसका रस चूसनेसे प्रसूता स्त्री के स्तनों में दन्तास्तु बीजैबैकुलद्रुमस्य
दुग्ध पृद्धि होती और दूधके कृमि नष्ट हो जाते हैं। स्थानच्युता अप्यचला भवन्ति ।
. इस प्रयोगका फल सात दिनमें मालम मौलसिरीके बीज चबानेसे हिलते हुवे दांत |
होता है दृढ़ हो जाते हैं।
(४७६४) बब्बूलादियोगः (४७६२) बदरीफलत्वगादिवर्तिः ___ (वृ. मा. । नाडीव्रणा.)
(यो. र. । मेदो.; वृ. नि. र. । मेदो.) घोण्टाफलत्वङ्मदनात्फलानि
बब्बूलस्य दलैः सम्यग्वारिणा परिपेषितैः । पूगस्य च त्वग्लवणं च मुख्यम् ।
गात्रमुद्वर्तयेत्पश्चाद्धरीतक्या सुपिष्टया ॥ स्नुपर्कदुग्धेन सहैष कल्को
भूय उद्वर्तनं कृत्वा पश्चात्स्नानं समाचरेत् । वर्तीकृतो हन्त्यचिरेण नाडीम् ।।
प्रस्वेदान्मुच्यते शिमं ततस्त्वेवं समाचरेत् ।। बेरांकी छाल (. ऊपरका छिलका ), मैनफल, | बबूलके पत्तोंको पानी में पीसकर शरीरपर मलें सुपारी, दालचीनी और सेंधा नमक के समानभाग और फिर इसी प्रकार हर्र को पीसकर मलें । मिश्रित अत्यन्त महीन चूर्णको स्नुही (सेंड-सेहुंड) । तत्पश्चात् स्नान करें । इस प्रयोगसे अधिक स्वेद और आकके दूधमें घोटकर वत्ती बनाकर उसे ! आना शीघ्र ही रुक जाता है ।
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