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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६१०] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [बकारादि - - - अथ बकारादिमिश्रप्रकरणम् । (४७६०) बकुलप्रयोगः | घावमें लगानेसे नाडीव्रण (नासूर) शीघ्र ही नष्ट हो (वै. जी. । वि. ४) जाता है। सोयं सुगन्धिमुकुलो वकुलो विभाति (४७६३) बदरीमृलयोगः वृक्षाग्रणीः प्रियतमे मदनकबन्धुः। (रा. मा. । स्त्री.) यस्य त्वचैव चिरवितया नितान्तं स्यान्मूलमाराभृगालिकायाः दन्ता भवन्ति चपला अपि वज्रतुल्याः॥ सञ्चय दन्तैधृतमास्यमध्ये । मौलसिरीकी छालको दीर्घकाल तक: चबाने से स्तन्यावह वासरसप्तकेन हिलते हुवे दांत भी वज्रके समान दृढ़ हो जाते हैं। स्तन्योत्यकीटक्षयकारणं च ॥ (४७६१) यकुलबीजचर्वणम् छोटी बेरीकी जड़को दांतों से चबाकर मुखमें (रा. मा. । मुखरो.) रखकर उसका रस चूसनेसे प्रसूता स्त्री के स्तनों में दन्तास्तु बीजैबैकुलद्रुमस्य दुग्ध पृद्धि होती और दूधके कृमि नष्ट हो जाते हैं। स्थानच्युता अप्यचला भवन्ति । . इस प्रयोगका फल सात दिनमें मालम मौलसिरीके बीज चबानेसे हिलते हुवे दांत | होता है दृढ़ हो जाते हैं। (४७६४) बब्बूलादियोगः (४७६२) बदरीफलत्वगादिवर्तिः ___ (वृ. मा. । नाडीव्रणा.) (यो. र. । मेदो.; वृ. नि. र. । मेदो.) घोण्टाफलत्वङ्मदनात्फलानि बब्बूलस्य दलैः सम्यग्वारिणा परिपेषितैः । पूगस्य च त्वग्लवणं च मुख्यम् । गात्रमुद्वर्तयेत्पश्चाद्धरीतक्या सुपिष्टया ॥ स्नुपर्कदुग्धेन सहैष कल्को भूय उद्वर्तनं कृत्वा पश्चात्स्नानं समाचरेत् । वर्तीकृतो हन्त्यचिरेण नाडीम् ।। प्रस्वेदान्मुच्यते शिमं ततस्त्वेवं समाचरेत् ।। बेरांकी छाल (. ऊपरका छिलका ), मैनफल, | बबूलके पत्तोंको पानी में पीसकर शरीरपर मलें सुपारी, दालचीनी और सेंधा नमक के समानभाग और फिर इसी प्रकार हर्र को पीसकर मलें । मिश्रित अत्यन्त महीन चूर्णको स्नुही (सेंड-सेहुंड) । तत्पश्चात् स्नान करें । इस प्रयोगसे अधिक स्वेद और आकके दूधमें घोटकर वत्ती बनाकर उसे ! आना शीघ्र ही रुक जाता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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