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कल्पप्रकरणम् ]
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तृतीयो भागः ।
इनके सेवन से ६४ प्रकारके उदररोग नष्ट
ब्राह्मीरसः स्यात्वचः सकुष्ठः
सशङ्खपुष्पः ससुवर्णचूर्णः । उन्मादिनामुन्मदमानसाना
होते हैं ।
(४७५८) ब्राह्मीरसादियोगः
( यो त । त. ३८; वृ. नि. र.; यो. र. । उन्मा. )
इति वकारादिरसमकरणम् ।
(४७५९) बीजपूरककल्पः (ग. नि. । औ. कल्पा.)
सिन्धुत्थेन घनागमे तु सितया काले शत्सञ्ज्ञके हेमन्ते च कणार्द्रहिङ्गरुचकैः सिद्धार्थतैलान्वितैः तैस्तैः शिशिरे मधावपि युतं ग्रीष्मे गुडेनान्वितं सञ्जानामपि वीजपूरकमिदं माहुः प्रशस्तं बुधाः ॥ विश्वासैन्धवसंयुतं च शिशिरे क्षौद्रैर्व सन्तोदये ग्रीष्मे क्षौद्रणान्वितं च विमलैङ्गिष्टकै:
अथ बकारादिकल्पप्रकरणम् ।
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स्मृतौ भूतहितात्मानां हि ॥ adset पानविधौ च शस्तो ब्राह्मीरसोऽयं सवचादिचूर्णः ॥
प्रावृषि | युक्तं शर्करा शरद्यथ च हेमन्ते सहिङ्गत्रयं सेव्यं यद्विदुषा त्रिदोषशमने श्रीमातुल सदा बिजौरेको :
॥
वर्षा ( श्रावण, भाद्रपद) में सेंधा नमक के साथ; शरदऋतु (आश्विन, कार्तिक) में मिश्रीके साथ; हेमन्त ऋतु ( अग्राहयण, पौष) में पीपल,
ब्राह्मीके स्वरसमें बच, कूठ, शंखपुष्पी और स्वर्णभस्मका समान भाग- मिश्रित चूर्ण मिलाकर उसकी नस्य देने या उसका अञ्जन लगाने अथवा उसे पिलाने से उन्माद और अपस्मारादि रोग नष्ट होते हैं ।
[ ६०९]
अद्रक, हींग और काला नमक तथा सरसों के तेल के साथ, और शिशिर (माघ, फाल्गुन) तथा वसन्त (चैत्र, वैशाख ) में भी इन्हीं चीजे के साथ एवं ग्रीष्म ( ज्येष्ठ, आषाढ़ ) में गुड़के साथ सेवन करना उत्तम है 1
।
अथवा
शिशिर ( माघ, फाल्गुन ) में सांठ और सेंधा नमक के साथ, वसन्त ( चैत्र, वैशाख ) में शहद के साथ, ग्रीष्म (ज्येष्ठ, आषाढ़ ) में शहद और पीपल के चूर्णके साथ, वर्षा ( श्रावण, भाद्रपद) में हिंग्वाष्टक चूर्णके साथ, शरद (आश्विन, कार्तिक) में मिश्री के साथ और हेमन्त ( अग्राहयण, पौष ) में हिंगुत्रय (हींग, नाडी हींग और हिंगुपत्री) के साथ सेवन करने से तीनों दोषों का शमन होता है । इति वकारादिकल्पप्रकरणम् ।
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