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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६०८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [बकारादि पाताल गरुडीकी जड़को पानीमें पीसकर । इन्हें काली मिर्चके चूर्ण और अदरकके रसके उसके साथ ये गोलियां सेवन करनेसे प्रसुप्ति | साथ १-१ पहरके बाद देनेसे समस्त सन्निपात (सुन्नबहरी) और मण्डल इत्यादि कुष्ठ नष्ट होते हैं। | नष्ट होते हैं। (४७५६) ब्रह्मवटी (१) (ब्रह्मप्रभावटी) पथ्य--मूंगका यूष और भात । (र. रा. सु. । सन्निपाता.; र. का. धे.। इसपर दिनमें सोनेसे परहेज करना चाहिये। ज्वरा. १) ( व्यवहारिक मात्रा-२ रत्ती।) शुदं सूतं द्विधा गन्धं रससाम्यममृतं क्षिपेत् । ब्रह्मवटी (२) कृष्णाभ्रताम्रलोहश्च मईयेत्यूषणद्रवैः ॥ ( र. चं.; र. रा. सु. । अपस्मार.) आकस्य द्रवैः पश्चात्क्रमाद्रावैदिन दिनम् । इन्द्रब्रह्मवटी प्र. सं. ४५९ देखिये । कृष्णजीरकपत्रागमजमोदा जयन्तिका ॥ । (४७५७) ब्रह्मवटी (३) यवानी तिलपर्णी च ब्राह्मी धत्तूरभृङ्गिराट् । (र. र. । उदरा.) यवानी चाकर्णी च शिग्रुहस्तिकशुण्डिके । | विडङ्गं दाडिमं कुष्ठं निम्बत्वग्दहनं वचा । श्वेतापराजितावासाचित्रकानां द्रवैश्च तम् ।। यूपं पाठा देवदारु निशा व्याघ्रनखाभया । भावयेद्वटिका कार्या बदरास्थिसमोपमा ।।। बिल्वकं रोहिणी चैला त्रित्मत्येककार्षिकम् । योज्येयं यामयामान्ते मरिचैराईकद्रवैः । जैपालबीजचूणे च दन्तीमूलं पलं पलम् ॥ इयं ब्रह्मवटी नाम सन्निपातकुलान्तकी ॥ ब्रह्मदण्डीरसप्रस्थं पलमाज्यं पुरातनम् । पथ्यं स्यान्मुद्गयूषेण दिवास्वापश्च वर्जयेत् ॥ | पूर्वकल्कयुतं पाच्यं मृद्वमिना सुपाचितम् ॥ शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग | भक्षयेद्वदराकारां नित्यं ब्रह्मवटी शुभाम् । तथा शुद्ध बछनाग, कृष्णाभ्रकभस्म, ताम्रभस्म चतुःषष्टयुत्तरव्याधीन्साध्यासाध्यानिहन्त्यलम्।। और लोहभस्म १-१ भाग लेकर प्रथम पारे गन्ध | बायबिडंग, अनारदाना, कूट, नीमकी छाल, ककी कजली बनावें और फिर उसमें अन्य औष- चीता, बच, सोंठ, मिर्च, पीपल, पाठा, देवदारु, धांका चूर्ण मिलाकर सबको १-१ दिन त्रिकुटा | हल्दी, नखी, हर्र, बेलगिरी, कुटकी, इलायची और ( सांठ, मिर्च, पीपल ), अद्रक, कालाजीरा, पतङ्ग, निसोतका चूर्ण १।-१। तोला तथा शुद्ध जमालअजमोद, जयन्ती ( जैत ), अजवायन, हुलहुल, | गोटे और दन्तीमूलका चूर्ण ५-५ तोले लेकर ब्राझी, धतूरा, भंगरा, अजवायन, अदरक, अमल- सबको एकत्र मिलाकर उसमें १ सेर ब्रह्मदण्डीका तास, सहजना, हाथीसुण्डी, सफेद कोयल, वासा | रस और ५ तोले पुराना घी मिलाकर मन्दाग्नि और चीतेके स्वरस या काथमें घोटकर बेरकी । पर पकावें । जब गाढ़ा हो जाय तो बेरकी गुठलीके गुठलीके बराबर गालियां बना लें। समान गोलियां बना लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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