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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्सप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [६०७] विमर्दयेच्छाल्मलिकाभवैवैः गुटिकां बदराकारां श्लेष्मकासापनुत्तये । स्याद्वोलबद्धो मधुयुक्त्रिवल्लः॥ भक्षयेदोलबद्धोय रसः सश्वासपाण्डुनुत् ॥ पित्ते तु चाम्ले मधुशर्कराभ्यां पारदभस्म और शुद्ध बछनाग १--१ भाग, मेहे प्रदेयो मधुपिप्पलीभ्याम् । शुद्ध गन्धक २ भाग, बोल (हीरादोखी--खूनरक्तार्शसां नाशकदेष सूतः खराबा), हरतालभस्म, भुनीहुई हींग, ककोड़ेकी ___ पित्ताशंसां चैव तु विद्रधेश्च ॥ | जड़, स्वर्णमाक्षिक भस्म, हल्दी, कटेली, जवाखार, रक्तप्रमेहस्य खुडस्य चापि कलिहारी की लड़की छाल, सफेद जीरा, सेंधास्त्रीणां गदस्यापि भगन्दरस्य ।। नमक और महुवेका सार १-१ भाग लेकर गिलोयका सत, शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक | सबका अत्यन्त महीन चूर्ण बनाकर उसे ७ दिन १-१ भाग लेकर कजली बनावें और फिर उसमें | तक अदरकके रस में घोटकर बेरके बराबर गोलियां ३ भाग बाल (हीरादाखी---खूनखराबा ) का | बा लें। अत्यन्त महीन चूर्ण मिलाकर सबको एक दिन इसके संवनसे कफज खांसी स्वास और सेभलको छालके रसमें घोटकर सुखाकर रक्खें । । पाण्डुका नाश होता है। इसे ९ रत्तीकी मात्रानुसार मिश्री में मिला- (४७५५) ब्रह्मरस: कर शहदके साथ चाटनेसे अम्लपित्त नष्ट ( र. सा. सं. । कुष्टा.; र. रा सु.; र. चं. । कुष्ठा.; होता है। र. मं. । अ. ६; र. चि. म. । अ. ९; र. इसे प्रमेहमें पीपलके चूर्ण और शहदके का. धे. । कुष्ठा.) साथ देना चाहिये। भागैकं मूच्छितं सूतं गन्धकत्वग्निवागुजी । यह रस रक्तार्श, पित्तार्श, विद्रधि, रक्तप्रमेह, | चूर्णन्तु ब्रह्मबीजाना प्रतिद्वादशभागिकम् ॥ वातरक्त, रक्त प्रदर और भगन्दरका नाश करता है। त्रिंशद्भागं गुडस्यापि क्षौद्रेण गुडिका कृता । साधारण अनुपान--मधु । अयं ब्रह्मरसो नाम्ना ब्रह्महत्यादिनाशनः ।। (४७५४) बोलबद्धो रसः (२) द्विनिष्कं भक्षणाद्धन्ति प्रसुप्तिकुष्ठमण्डलम् । ( र. र. स. । उ. ख. अ. १३; र. रा. सु.; पातालगरुडीमूलं जलैः पिष्ट्वा पिवेदनु । र. का. धे. । कासा.) ___ रससिन्दूर १ भाग तथा शुद्ध गन्धक, रसभस्म विर्ष तुल्यं गन्धकं द्विगुणं मतम् । चीतेकी जड़, बाबची, और ढाकके बीजोंका चूर्ण बोलतालकबाहीककर्कोटीमाक्षिक निशा॥ १२-१२ भाग लेकर सबको ३० भाग गुड़में कण्टकारी यवक्षारं लागलीजीरसैन्धवम् । मिला और फिर उसमें आवश्यकतानुसार शहद मधुकसारं सञ्चूर्ण्य सप्ताहं चाकद्वैः॥ मिलाकर १०-१० माशेकी गोलियां बनालें । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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