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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६०६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [ वफारादि: (४७४९) बुभुक्षुवल्लभोरसः (२) (४७५२) बोलपर्पटोरसः ( सिद्धोदयः) ( रसा. सार । अजी.) (र. चं.; र. रा. सु.; र. का. धे.; वृ. नि. र.; यद्वा भल्लाततैलेन गालितं परिवापितम् । । __ यो. र. । रक्तपित्ता.; यो. र. । प्रदर.) वीजपूराऽप्सु गन्धैकं लिह्यात् क्षौद्रेण भुक्तये ॥ सूतगन्धकसुकज्जलिकायाः आमलासार गन्धकको भिलावेके तेलके साथ पर्पटी समयुता समभागम् । अग्निपर गलाकर बिजौ रेके रस में बुझावें । बोलचूर्णविहित प्रतिवाप्यं इसे सेवन करनेसे भोजन अच्छी तरह पचता स्याद्रसोऽयमसगामयहारी ॥ है और अजीर्ण नहीं होता। | वल्लयुग्मयुगलं प्रतिदेयं ( मात्रा---२-३ रत्ती ।) शर्करामधुयुतः किल दत्तः । रक्तपित्तगुदजस्युतियोनि(४७५०) बुभुक्षुवल्लभो रसः (३) सावमाशु विनिवारयतीशः ॥ ( रसा. सार । अजीणां.) समान भाग शुद्ध पारे और शुद्ध गन्धककी ईश्वरानुगृहीतश्चेच्छतगन्धेन रचितम् । कजली बनाकर उसे घी चुपड़े हुवे लोहपात्र में स्वर्णसिन्दूरमेवाऽद्यादजीर्णादिरुजाऽपहम् ॥ डालकर बेरीकी मन्दाग्निपर पिघलावें और फिर उसमें ____ यदि केवल शतगुण गन्धकजारित स्वर्ण उसके बराबर बोल ( हीरादोखी खूनखराबा ) सिन्दूर ही सेवन किया जाय तो भी अजीर्णादि का अत्यन्त महीन चूर्ण मिलाकर गायके गोबरपर रोग नष्ट हो जाते हैं। बिछे हुवे केलेके पत्ते पर फैला दें तथा उसके (४७५१) बृहत्यादिलोहम् ऊपर दूसरा पत्ता ढककर उसे गोबरसे दबा दें। (र. र. । कुष्ठा.) थोड़ी देर बाद जब वह स्वांग शीतल हो जाय तो बहतीशर्करानागतिलसारसमन्वितम् ।। पर्पटीको निकालकर पीस लें । लोहं कुष्ठं निहन्त्याशु सर्वरोगहरोऽपि सः॥ इसे ६ रत्तीकी मात्रानुसार मिश्रीमें मिला बड़ी कटैली, खांड, नागकेसर और तुष- | कर शहदके साथ चाटनेसे रक्तपित्त, बवासीरका रहित तिलका चूर्ण १-१ भाग तथा लोहभस्म रक्त और रक्तप्रदर नष्ट होता है । ४ भाग लेकर सबको एकत्र घोटकर रक्खें । (४७५३) बोलबद्धो रसः (१) इसके सेवनसे कुष्ठादि समस्त रोग नष्ट | (वृ. यो. त. । त. १०३; वै. र.; र. च. । अर्श.; होते हैं। वृ. नि. र. । ग्रहण्य.) ( मात्रा-४ से ८ रत्ती तक । अनुपान- गुडूचिकासत्त्वसमो रसेन्द्रो शहद या त्रिफलाकाथ ।) गन्धः समांशो निखिलेन बर्बरः। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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