Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[६०४] भारत-भैषज्य-रलाकरः ।
[बकारादि और पखानभेद समान भाग लेकर महीन चूर्ण बनावें । सफेद कोयलके रसकी १-१ भावना देकर उसमें और उसे गिलोयके रसमें धोटकर २-२ चावलकी २॥ तोले काली मिर्चोंका चूर्ण मिलाकर १ पहर गोलियां बना लें।
पत्थरके खरलमें घोटें । और सरसेकेि बराबर गोलियां ये गोलियां बालकों के कष्टसाध्य यकृत, बनाकर धूपमें सुखा लें। ज्वर, प्लीहा, शोथ, विबन्ध, पाण्डु, खांसी, मुखरोग |
ये गोलियां बालकों के भयङ्कर सन्निपात ज्वर और उदर रोगांको नष्ट करती हैं।
| और खांसी आदि समस्त रोगांको नष्ट करती हैं।
(४७४४) यालहरीतक्यादियोगः (४७४३) बालरसः
(वृ. नि. र. । शूक.) (र. सा. सं.; धन्व.; भै. र.; र. च.; र. रा.
पालपथ्यापलेकं च तुत्थं शाणमितं तथा। सु.; र. र. । बालरो.)
निम्बद्रवेण सम्पर्ध दृढं सप्तदिनानि वै ॥ पलं शुद्धस्य सुतस्य गन्धकस्य च तत्समम् । गुटिकां चणकमायां छायाशुष्कां तु कारयेत् । सुवर्णमाक्षिकस्यापि चार्द्धभागं नियोजयेत् ।। । शीतोदकानुपानेन नित्यमेकां प्रदापयेत् ॥ ततः कज्जलिकां कृत्वा पात्रे लौहमये दृढे । घस्राणामेकविंशत्या मुच्यते तूपदंशतः । केशराजस्य भृङ्गस्य निर्गुण्डयाः पर्णसम्भवम् ॥ शालिगोधूममुद्गाश्च गोसर्पिः पथ्यमीरितम् ।। स्वरसं काकमाच्याश्च ग्रीष्मसुन्दरकस्य च । छोटी हर्रका चूर्ण ५ तोले और शुद्ध नीलासूर्य्यावतंकवर्षाभूभेकपर्णीरसैस्तथा ॥
थोथा ५ माशे लेकर दोनोंको एकत्र मिलाकर सात श्वेतापराजितायाश्च रसं दद्याद्विचक्षणः । दिन तक नीमके पत्तों या उसकी छालके रसमें घोटकर देयं रसार्द्धभागेन चूर्ण मरिचसम्भवम् ।। चनेके बराबर गोलियां बनाकर छायामें सुखा लें। शुभे शिलामये पात्रे यामं दण्डेन मईयेत् । इनमें से नित्य प्रति एक गोली शीतल जलके शुष्कमातपसंयोगाद्गुटिकां कारयेद्भिषक् ।। | साथ सेवन करनेसे २१ दिन में उपदंश (आतप्रमाणं सर्षपाकारं बालानाञ्च प्रयोजयेत् । । शक ) रोग नष्ट हो जाता है । हन्ति त्रिदोषसम्भूतं ज्वरश्चैव सुदारुणम् ॥ पथ्य-शाली चावल, गेहूं, मूंग और गोघृत । कासश्च विविधश्चैव सङ्घरोगं निहन्ति च ॥ | (४७४५) बालार्करसः शुद्ध पारद ५ तोले, शुद्ध गन्धक ५ तोले
(वृ. नि. र. । ज्वरा.) और सोनामक्खी भस्म २॥ तोले लेकर तीनोंको | रसहिङ्गलजेपालवृद्ध यादन्त्यम्बुमर्दयेत् । अच्छी तरह घोटकर कजली बनावें । तत्पश्चात् उसे | दिनार्धन ज्वरं हन्ति तमः सूर्योदयो यथा ॥ लोहेके खरल में काले भंगरे और सफेद भंगरे तथा पारद भस्म १ भाग, शुद्ध हिंगुल २ भाग संभालुके पत्तों के रस एवं मकोय, ग्रीष्मसुन्दर, | और शुद्ध जमालगोटा ३ भाग लेकर सबको दन्ती हुलहुल, पुनर्नवा ( बिसखपरा ), मण्डूकपर्णी और | के रसमें घोटकर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें।
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