Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसंपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[६०३]
उन्मादरोगज्वरनेत्ररोगा
| (४७४१) बालज्वराङ्कशरस: नासोद्भवा पञ्चविधाश्च गुल्माः ।।
(वृ. नि. र. । बालरो.) वातमशीतिविकारं चत्वारिंशत्प्रभेदजं पित्तम्। मतमताभ्रवङ्गं च रौप्य योज्यं च तत्समम् । श्लेष्माणं विंशतिक विनाशमायाति दुष्टमपि ॥
मृतताम्रस्य तीक्ष्णस्य प्रत्येकं च द्विभागिकम् ।। भवति रुचिरदीप्तिौरवर्णो मनुष्यः
व्योषं विभीतकं चैव कासीसं मृतमेव च । समधिकशतवर्ष जीवतीह प्रगल्भम् ।
नागवल्लीदलरसैर्भावयेच्च पुनः पुनः॥ विघटितघनरोगो मासमात्रमयोगा
वल्लप्रमाणो दातव्यः सर्वरोगहरः परः। धुवतिनयनहारी हृष्टपुष्टो वृषश्च ॥
गर्मिणीबालकानां च सर्वज्वरविनाशनः ।। बाबची १० पल, त्रिफला १० पल, बिडंग
पारदभस्म, अभ्रकभस्म, वंगभस्म और चांदी तण्डुल (बायबिडंगको मींग) ७ पल, शिलाजीत
| भस्म १--१ भाग, ताम्रभस्म और फौलादभस्म तथा ३॥ पल, शुद्ध गूगल १ पल (५ तोले ), शुद्ध ।
सोंठ, मिर्च, पीपल, बहेड़ा और कसीस-भस्म भिलावे १०० नग, पोखरमूल १ पल, लोहभस्म
२-२ भाग लेकर सबका महीन चूर्ण करके उसे ३ पल, फटकीकी खील २॥ तोले तथा तेजपात,
पानके रसकी कई भावनाएं देकर ३-३ रत्तीकी नागरमोथा, पीपल, मुलैठी, चीतेकी जड़, पीपला
गोलियां बना लें। मूल, नागकेसर, बड़की जड़की छाल, कालीमिर्च
इनके सेवनसे गर्भिणी और बालकों के समस्त और केसर ११-१। तोला लेकर सबका महीन चूर्ण बनावें और उसमें उसके बराबर खांड मिला
प्रकारके ज्वर नष्ट होते हैं । कर रखें।
(४७४२) बालयकृदरि लोहम् इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे सम- (आ. वे. वि. । बालरो. अ. ८०) स्त प्रकारके कुष्ठ, ६ प्रकारका अर्श ( बवासीर ),
सहस्रपुटितश्चानं लौहश्चैव तथा रसः । श्वित्रकुष्ठ, चित्र, ८ प्रकारके उदररोग, क्षय मूत्रकृ.
जम्बीरवीजातिविषे मूलं प्लीहारिसम्भवम् ।। च्छू, पाण्डु, कण्ठरोग, २० प्रकारके प्रमेह, उन्माद,
रक्तचन्दनमश्मनः प्रत्येकञ्च समांशकम् । ज्वर, नेत्ररोग, नासारोग, ५ प्रकारके गुल्म, ८०
गुडूचीस्वरसेनैव धान्यद्वयमिता वटी॥ प्रकारके वातरोग, ४० प्रकारके पित्तरोग और २० । बालानां यकृतं घोरं ज्वरं प्लीहानमेव च । प्रकारके कफजरोग नष्ट होते हैं। तथा ।
शोथं विबन्धं पाण्डुश्च कासं मुखगदं तथा ॥ मनुष्य सुन्दर गौरवर्ण हो जाता है, एवं सौ वर्ष
उदरं नाशयेदाशु भास्करस्तिमिरं यथा। तक जीवित रहता है। . इसे केवल १ मास तक ही सेवन करनेसे बालयकृदरि म लौहः श्रीशिवभाषितः ॥ समस्त जटिलरोग नष्ट हो जाते हैं।
सहस्रपुटी अभ्रकभस्म, लोहभस्म, पारदभस्म, (मात्रा-३ माशे से ६ माशे तक ।) 'जम्बीरीके बीज, अतीस, सरफेकेकी जड़, लालचन्दन
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