Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[बकारादि
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माषं पृथग् वरुणचन्द्रलतालवानि
इसे प्रातःकाल गायके दूधके साथ खिलाना सर्व विमर्थ पयसा विलिहेल्पगे च ॥ और आहारमें केवल गायका दूध और शाली चावशाल्योदन गोपयसाऽत्र भोज्यम्
लका मात देना चाहिये । प्यासमें पानी न देकर दुग्धेन कार्यस्त्वतिड्विनाशः। क्षयं च पाण्डं प्रसुतीगदं च
| गायका दूध ही देना चाहिये। नश्यन्ति सत्यं ह्यनुभूतमेतत् ।।
इसके सेवनसे क्षय, पाण्डु और प्रसूत रोग __ केलेकी छिली हुई फली आधी, पीपल वृक्षके नष्ट होते हैं । यह सत्य और अनुभूत प्रयोग है। अंकुर ११ तोला, बोल, बरनेके पुष्प, इलायची
ब्रह्मवटी और लोंगका चूर्ण १-१ माशा लेकर सबको एकत्र पीस लें।
रसप्रकरणमें देखिये। इति बकारादिगुटिकाप्रकरणम् ।
अथबकारादिगुग्गुलुप्रकरणम् ।
(४६४५) बिल्वाद्यो गुग्गुलः
छाल, पोखरमूल, बहेड़ा, यवक्षार, काली मिरच, सांठ, (ग. नि. । गुटिका.)
| अजवायन, बच, कचूर , इन्द्रजौ, अम्लबेत, छोटी विल्वैलापटुहेमचव्यहपुषाद्राक्षाकणादाडिमं इलायची, दालचीनी, तिन्तडीक, चीता, नीमके पत्ते, मूलं पौष्करमक्षपाक्यमरिचं शुण्ठी यवानी वचा। दोनों जीरे, काला नमक (सञ्चल), कटेली, सुगन्ध कर्चुरेन्द्रयवाम्लवेतसत्रुटित्वक्तिन्तडीकाग्निकं बाला, आमला, पाठा, धनिया, जवासा, अजमोद, नैम्बं पत्रमजाजियुग्मरुचकं क्षुद्राम्बुधात्रीफलम् ।। पीपलामूल, तेजपात, कलौंजी और नागरमोथा । पाठाधान्ययवासदीप्यककणामूलं दलं वाष्पिका इनका चूर्ण १-१। तोला, पुराना शहद ४० मुस्ता कर्षसमैश्चतुष्पलयुतैः क्षौद्रस्य जीर्णस्य वै। तोले और शुद्ध गूगल ४० तोले लेकर सबको दत्त्वा गुग्गुलमत्र चाष्टपलिकं कल्वा वटान्भक्षयेत् एकत्र मिलाकर अच्छी तरह कूटें और ( ६-६ ते जग्या विनिहन्ति वातकफजान् माशेके) मोदक बनाकर रखें।
व्याधीनशेषानपि॥ बेलछाल, बड़ी इलायची, सेंधानमक, नाग- इनके सेवनसे समस्त वातकफज रोग नष्ट केसर, चव, हाऊबेर, मुनका, पीपल, अनारफी होते हैं।
इति बकारादिगुग्गुलुमकरणम् ।
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