Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अवलेहमकरणम् ] तृतीयो भागः।
[५७३] काथ्यद्रव्यात्रिगुणितं गुडं क्षिप्त्वा पुनः पचेत् ।। (४६५०) यिभीतकावलेहः (१) सम्यक् पकं च विज्ञाय चूर्णमेतत्मदापयेत् ।।
(रा. मा. । रक्तपित्ता. ९) चित्रकस्त्रिता दन्ती तेजोढा पलिकाः पृथक् । निर्णयानालेन सार्थ पृथक् त्रिपलिकाः कार्याव्योपैलामरिचत्वचः॥ निक्षिपेन्मधुशीते च तस्मिन्मस्थपमाणतः । ।
। कलितरुफलकृष्णासैन्धवानि पलिह्यात् ।
...| अभिलपति विजेतुं यः स्वरस्य प्रणाशं एवं सिद्धो भवेच्छ्रीयान् बाहुशालगुडः शुभः॥
स पिबतु सह दुग्धेनामलक्या फलं वा। जयेदीसि सर्वाणि गुल्मं वातोदरं तथा। आमवातं प्रतिश्यायं ग्रहणीक्षयपीनसान् ।।
बहेड़ा, पीपल और सेंधानमक के अत्यन्त हलीमकं पाण्डुरोग प्रमेहं च रसायनम् ॥
| महीन चूर्णको कांजी में मिलाकर चाटने से अथवा
| आमले के चूर्णको दूधके साथ पीनेसे स्वरभंग इन्द्रायणमूल, नागरमोथा, सेांठ, दन्तीमूल, । (गला बैठना ) रोग नष्ट होता है । हर्र, निसोत, शठी (कचूर), बायबिडंग, गोखरु,
(४६५१) बिभीतकावलेहः (२) चीतामूल और तेजबल २॥२॥ तोले; सूरण
(वै. जो. । वि. ३; यो. र.; व. से. । कासा.; (जिमीकन्द) ४० तोले, विधारामूल २० तोले और शुद्ध भिलावा २० तोले लेकर सबको एकत्र
ग. नि. । लेहा.) कूटकर ३२ सेर पानीमें पकावें । जब ८ सेर पानी / अजस्त्र मूत्रस्य शतं पलानां शेष रह जाय तो उसे छानकर उसमें उपरोक्त
शतं पलानां च कलिद्रुमस्य । समस्त ओषधियों से ३ गुना गुड़ मिलाकर पुनः
पकं समवाशु निहन्ति कासं पकावें और गाढ़ा हो जाने पर उसमें चीता, निसात, ।
वासं च तद्वत्सबलं बलासम् ।। दन्तीमूल और तेजबलका चूर्ण ५-५ तोले तथा ६। सेर बहेड़े के चूर्णको उतने ही बकरेके सोंठ, मिर्च, पीपल, इलायची, मिर्च और दालची- | मूत्रमें पकावे जब गादा हो जाय तो उतार कर नीका चूर्ण १५-१५ तोले मिलाकर अग्निसे नीचे | चिकने पात्र में भरकर रख दें। उतार लें एवं उसके ठण्डा हो जाने पर उसमें १ | इसे शहद में मिलाकर चाटनेसे खांसी, श्वास सेर शहद मिलाकर चिकने पात्रमें भरकर रख दें। और कफका नाश होता है।
इसके सेवनसे अर्श, गुल्म, वातोदर, आम- ( मात्रा-३ माशे।) वात, प्रतिश्याय, संग्रहणी, क्षय, पीनस, हलीमक, | (४६५२) वीजपूरकादिलेहः पाण्डु और प्रमेहका नाश होता है ।
(ग. नि. । छर्य.) यह रसायन भी है।
निष्पीड्य च बीजपूरकाद्रसमेलाकनागरायुतम् । (मात्रा-आधेसे १ तोले तक ।) लेहो मधुशर्करायुतो वमथु वातकृतां नियच्छति॥
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