Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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गुटिकाप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[५६९]
अथ बकारादिगुटिकाप्रकरणम्।
(४६४०) यल्लीतर्वादिगुटिका | त्रिकदुविकटदंष्टा हिङगुजाररौद्र (ग. नि. । वात. व्या.)
त्रिलवणनखमुग्रं जीरके द्वे च हस्तौ । बल्लीतरुः पुष्करमूलशुण्ठी
प्रकटितकटुकाः प्रोल्लसत्केसरौघः कुष्ठं गुडूचा सुरदारु रास्ना ।
___ कफमदगजहन्ताकेसरीबीजपूरः ॥ स्यात्सैन्धवं तद्विगुणो गुडश्च
__ सांठ, मिर्च, पीपल, हांग, सेंधा नमक, सञ्चल सर्वाङ्गवाते गुटिका च सेव्याः ॥ नमक, बिडनमक, सफेद जीरा और काला जीरा । साल वृक्षकी छाल, पोखरमूल, सेठ, कूठ,
इनके समान भाग-मिश्रित चूर्णको नीबूके रसमें गिलोय, देवदारु, रास्ना और सेंधा नमक १-१
घोटकर गोलियां बनावें । भाग लेकर चूर्ण बनावें आर उसे सबसे २ गुने
यह गोलियां कफ रूपी हाथीके लिए सिंहके गुड़में मिलाकर (६-६ माशेकी ) गोलियां
समान हैं। बना लें।
(४६४३) वृद्धदारुमोदकः इनके सेवनसे सर्वाङ्गगत वायु नष्ट होता है।
(वृ. नि. र. । संग्रहणी रो.) (४६४१) विल्वादिगुटिका
| वृद्धदारुकभल्लातशुण्ठीचूर्णेन पेषितः । (वृ. नि. र. । शूला.; व. से. । शूला.)
मोदकः सगुडो हन्यात्पड्विधाः कृतारुजः ॥
विधारामूल, शुद्ध भिलावा और सांठ का बिल्वैरण्डतिलैः कृत्वा गुटिकाचाम्लपिताः।
चूर्ण १-१ भाग तथा गुड़ ६ भाग लेकर सबको वातशूलोपशान्त्यर्थं प्रयुज्यादुष्ट्रया तथा ।।। एकत्र मिलाकर मोदक बनावें । बेलछाल, अरण्डमूल और तिल समानभाग
इनके सेवनसे ६ प्रकारका अर्शरोग नष्ट लेकर चूर्ण बनावें और उसे नीबूके रसमें घोटकर | होता है । (३-३ माशेकी) गोलियां बना लें ।
( मात्रा-९ माशे । ) इन्हे वृश्चिकालीके रसके साथ सेवन करनेसे
| (४६४४) योलवटिका वातज शूल नष्ट होता है।
(र. चं. । सूतिका.) (४६४२) बीजपूरादिगुटिका रम्भाफलार्धसह पिप्पलजाङ्कराणि (यो. चि. । अ. ३)
कर्ष गृहीतमपि मापमितं च बोलम् ।
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