SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुटिकाप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [५६९] अथ बकारादिगुटिकाप्रकरणम्। (४६४०) यल्लीतर्वादिगुटिका | त्रिकदुविकटदंष्टा हिङगुजाररौद्र (ग. नि. । वात. व्या.) त्रिलवणनखमुग्रं जीरके द्वे च हस्तौ । बल्लीतरुः पुष्करमूलशुण्ठी प्रकटितकटुकाः प्रोल्लसत्केसरौघः कुष्ठं गुडूचा सुरदारु रास्ना । ___ कफमदगजहन्ताकेसरीबीजपूरः ॥ स्यात्सैन्धवं तद्विगुणो गुडश्च __ सांठ, मिर्च, पीपल, हांग, सेंधा नमक, सञ्चल सर्वाङ्गवाते गुटिका च सेव्याः ॥ नमक, बिडनमक, सफेद जीरा और काला जीरा । साल वृक्षकी छाल, पोखरमूल, सेठ, कूठ, इनके समान भाग-मिश्रित चूर्णको नीबूके रसमें गिलोय, देवदारु, रास्ना और सेंधा नमक १-१ घोटकर गोलियां बनावें । भाग लेकर चूर्ण बनावें आर उसे सबसे २ गुने यह गोलियां कफ रूपी हाथीके लिए सिंहके गुड़में मिलाकर (६-६ माशेकी ) गोलियां समान हैं। बना लें। (४६४३) वृद्धदारुमोदकः इनके सेवनसे सर्वाङ्गगत वायु नष्ट होता है। (वृ. नि. र. । संग्रहणी रो.) (४६४१) विल्वादिगुटिका | वृद्धदारुकभल्लातशुण्ठीचूर्णेन पेषितः । (वृ. नि. र. । शूला.; व. से. । शूला.) मोदकः सगुडो हन्यात्पड्विधाः कृतारुजः ॥ विधारामूल, शुद्ध भिलावा और सांठ का बिल्वैरण्डतिलैः कृत्वा गुटिकाचाम्लपिताः। चूर्ण १-१ भाग तथा गुड़ ६ भाग लेकर सबको वातशूलोपशान्त्यर्थं प्रयुज्यादुष्ट्रया तथा ।।। एकत्र मिलाकर मोदक बनावें । बेलछाल, अरण्डमूल और तिल समानभाग इनके सेवनसे ६ प्रकारका अर्शरोग नष्ट लेकर चूर्ण बनावें और उसे नीबूके रसमें घोटकर | होता है । (३-३ माशेकी) गोलियां बना लें । ( मात्रा-९ माशे । ) इन्हे वृश्चिकालीके रसके साथ सेवन करनेसे | (४६४४) योलवटिका वातज शूल नष्ट होता है। (र. चं. । सूतिका.) (४६४२) बीजपूरादिगुटिका रम्भाफलार्धसह पिप्पलजाङ्कराणि (यो. चि. । अ. ३) कर्ष गृहीतमपि मापमितं च बोलम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy