Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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मिश्रमकरणम् ] तृतीयो भागः।
[५३३) शालपणी, पृष्ठपर्णी, फटेली, कटेला और | नीसे मथकर पीनेसे विषमज्वर, हृद्रोग, खांसी, गोखरु समान भाग मिला कर १। तोला लें और श्वास और क्षयका नाश होता है। २ सेर पानीमें पकाकर १ सेर पानी शेष रक्खें ।। (४४९७) पश्चाम्लम् इस पानीमें चावलांकी पेया बनाकर पिलानेसे (भै. र. । परिभाषा.) रक्तातिसार और अधोगत रक्तपित्तका नाश | कोलदाडिमवृक्षाम्लैः साम्लवेतससंगतैः । होता है।
चतुरम्लन्तु पश्चाम्ल मातुलुङ्गसमायुतम् ॥ ( पेया बनानेके लिये १ सेर पानी में ५
बेर, अनार, इमली और अम्लबेतके योगको
"चतुराम्ल" कहते हैं । यदि इसमें बिजौ रेको तोले चावल डालने चाहिये। )
भी सम्मिलित कर लिया जाय तो उसका नाम (४४९५) पञ्चशिरीषोऽगदः
" पश्चाम्ल" हो जाता है। (च. स. । चि. अ. । २३ विष.; ग. नि.।। (४४९८) पटोलादियस्तिः सर्पविष.)
(च. सं. । चि. अ. ३)
पटोलारिष्टपत्राणि सोशीरश्चतुरङ्गलः । शिरीषपुष्पपनत्वक्फलमूलकृतोऽगदः।।
हीवेरं रोहिणी तिक्ता श्वदंष्ट्रा मदनानि च ॥ सिद्धः पञ्चशिरीषोऽयं चरस्थिरविषापहः॥
स्थिरा बला च तत्सर्व पयस्यौंदके श्रृतम् । सिरसके पुष्प, पत्र, छाल, फल और मूल
क्षीरावशेष निमूह संयुक्तं मधुसर्पिषा ॥ समान भाग लेकर कूट लें।
कल्कैर्मदनमुस्तानां पिप्पल्या मधुकस्य च । यह चर ( सर्पादि ) और अचर ( संखिया, वत्सकस्य च संयुक्त बस्ति दधाज्वरापहम् ॥ बछनाग आदि ) विष को नष्ट करनेके लिये पटोल और नीमके पत्ते, खस, अमलतास, अत्युत्तम अगद है।
सुगन्धवाला, मजीठ, कुटकी, गोखरु, मैनफल, ( इसे धीमें मिलाकर पिलाना चाहिये ।) | शालपर्णी और खरैटी को आधा भाग जलयुक्त
दूधमें पका और जब दूध मात्र शेष रह जाय (४४९६) पञ्चसारम्
तो उसे छानकर उसमें शहद, घी तथा मैनफल, ( वृ. नि. र.; ग. नि. । ज्वरा.)
नागरमोथा, पीपल, मुलैठी और इन्द्रजौका कल्क मिला सर्पिः क्षौद्रं शृतं क्षीरं पिप्पल्यः सितशर्कराः। कर उसकी बस्ति दें। इससे ज्वर नष्ट होता है। पिबेत्खजेनोन्मथितं पश्चसारमिति स्मृतम् ॥ | ( यह बस्ति विषम ज्वरमें हितकारी है।) विषमज्वरहद्रोगकासश्वासक्षयापहम् ।। (४४९९) पथ्यायोगः
घी, शहद, पकाहुवा दूध, पीपलका चूर्ण । (वै. म. र. । पट. ४) और सफेद खांड समान भाग लेकर सबको मथ- | प्रसेकशमनी पथ्या भुक्तस्योपरि चर्विता ।
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