Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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मिश्रप्रकरणम् ]
पड़ती रहे । दिनमें एक दो बार पांच दिन तक डंडेसे इसको चला दियाकरे, जिससे नांदके पैदेमें जम न जाय । बाद छठे दिन गंगाजलके माफिक नितरे हुवे (थहरायेहुवे ) निर्मल जलको दूसरी स्वच्छ लोहेकी कढ़ाइमें निकाल लेवे; इस कढ़ाईको भठ्ठीपर चढ़ाकर पकावे, जब आधा सेर मात्र पानी बाकी रहे तब इसमें लहसुनका चार तोला स्वरस डाल दे और मन्दी २ आंच से पकाना शुरूकरे । जब अन्दाज सोलह तोले पानी रह जाय तब कढ़ाईको भहीसे उतारकर ठंडी कर लेवे । बस प्रतिसारणीय क्षार बन गया, इसका रंग लाल हो जाता है, और यह बहुत चिकना होता है। जहां पर लग जायगा उस जगह तुरन्त घाथ कर देगा । यदि थोडासा लगाया जायगा तो फलक पैदा कर देगा। इस क्षारको शीशी में भरकर रख छोड़े। प्लेगकी गांठ या और फोड़ेकी गांठ जहांपर शस्त्र लगाने की आवश्यकता हो उन सब गाठोंको फोड़कर यह क्षार बहा देगा और उस जगहको काली कर देगा, जो कुछ समय (महीना पन्दरह दिन) में स्वयं चमड़े के रंगमें मिल जायगी । इसके लगानेपर
तृतीयो भागः ।
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इतना भारी मरीज़को दुःख भी नहीं होता है । यदि रोगी इतना दुःख भी नहीं सह सके तो सौ बार धोया हुवा घी लगा देने से पोड़ा तुरन्त बन्द हो जाती है । और जो घाव ऐसे सड़े हुवे हैं कि जिनका अच्छा होना बहुत मुशकिल है उनके ऊपर लगा देने से भी उनको तत्काल जलाय देगा, परन्तु घाव में लगानेसे कुछ अधिक पीड़ा मालूम होगी इसलिये कुछ इसमें पानी मिलाकर लगावे, जब घाव कमजोर पड़ जाय तब बिनाही पानी मिलाये थोड़ा थोड़ा लगावे | बवासीर के मस्से जो बाहर होयं अथवा और शरीर में जहां कहीं मस्से हों या सफेद कुष्ठका कोई दाग हो या गजचर्म दाद अर्थात् जिस जगहको साफ करना हो उसी जगह लेप कर देनेसे उतनी जगह को उपाड़कर फेंक देगा और अपना घाव कर देगा, इस घावके ऊपर गरम घी चुपड़ने से पीड़ा भी शान्त हो जावेगी और घाव भी अच्छा हो जावेगा । इस क्षारका स्वभाव गरम है इसलिये गरम देश, गरमकाल, रोगीकी पित्तप्रकृतिको बचा कर इसका प्रयोग करे ।
(रसायनसारसे उद्धृत )
इति पकारादिमिश्रप्रकरणम् ।
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