Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
हतीयो भागः।
[५१७]
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इसे सेवन करनेसे न तो कभी अङ्गों में । खादेवल्लाय प्रातः शीतं चानु पिबेजलम् । शिथिलता आती है और न कमर टूटती है। अष्टादशममेहांश्च जयेन्मासोपयोगतः ।। तथा शरीरकी कान्ति स्वर्णके समान दीप्तिमान तुष्टिं तेजो बलं वर्ण शुक्रवद्धिमनुत्तमाम् । हो जाती है। इसके अतिरिक्त यह रस समस्त प्रमे- अग्नेलं वितनुते मेहकुञ्जरकेसरी॥ हेको भी नष्ट करता है।
दिव्यं रसायनं श्रेष्ठं नात्र कार्या विचारणा ॥ यदि इसे नपुंसक मनुष्य भी सेवन करे तो
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लोहभस्म, अभ्रकवह भी अत्यन्त बलशाली सन्तान उत्पन्न करने में
| भस्म, नाग (सीसा) भस्म, बंगभस्म, स्वर्णभस्म, समर्थ हो जाता है।
हीराभस्म और मोतीभस्म समानभाग लेकर प्रथम यदि इसे वृद्धा स्त्री सेवन करे तो वह भी पारे गन्धककी कजली बनावें और फिर उसमें युवतीके समान हो जाती है।
अन्य औषधे मिलाकर सबको एक दिन शतावरके इसके अतिरिक्त यह रस गर्भाशयके वातज रसमें घोटकर गोला बना लें और उसे सुखाकर और कफज रोगोको भी नष्ट करता है। शरावसम्पुटमें बन्द करें एवं गढ़ेमें रखकर अरने (४४५८) प्रमेहकुठारो रसः
उपलांकी आगमें पकायें । उपले इतने डालने (यो. त. । त. ५१; र. रा. सु. । प्रमेह.; वृ.
चाहिये कि अग्नि ४ पहर में शान्त हो जाय ।
तत्पश्चात् सम्पुटके स्वांग शीतल हो जाने पर ___ यो. त. । त. १०३)
उसमेंसे गोलेको निकाल कर खूब खरल करके चन्द्रकलावटी सं. १८८६ देखिये । शीशीमें भर लें। (४४५९) प्रमेहकुञ्जरकेसरीरसः __इसमें से नित्य प्रति ६ रत्ती दवा शीतल (र. चं. । प्रमेहा.)
जलके साथ १ मास तक सेवन करनेसे १८ प्रका
रके प्रमेह नष्ट हो जाते हैं। रसगन्धायसाभ्राणि नागवङ्गौ सुवर्णकम् । वनकं मौक्तिकं सर्वमेकीकृत्य विचूर्णयेत् ॥
यह रस उत्साह, तेज, बल, वर्ण, शुक्र और
| अग्निकी वृद्धि करता है । तथा एक श्रेष्ठ रसाशतावरीरसेनैव गोलकं शुष्कमातपे।
यन है। बुद्धा शुष्कं समुदत्य शरावे सुदृढे क्षिपेत् ।। । ( व्यवहारिक मात्रा-१ रत्ती । ) सन्धिलेपं मृदा कुर्याद्गर्ने च गोमयामिना। (४४६०) प्रमेहकुलान्तको रसः पुटेधामचतुःसल्यमुद्धृत्य स्वांगशीतलम् ॥
(मेहकुलान्तकः) श्लक्ष्णं खल्वे विनिक्षिप्य गोलं ते मर्दयेद (र. र.; र. का. धे. । प्रमेहा.)
दृढम् । मृतं व मृत तुल्यं मृताभ्रं मृतकाविधा। देवब्राह्मणपूजाश कृत्वा धृत्वाऽथ कूपिके ॥ । लशुनं सर्वतुल्यांशं सर्वमेकत्र पेषयेत् ॥
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