Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[ ५१२]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
तोलकत्रितयं चैव लौहचूर्ण क्षिपेत्सुधीः। । (४४५१) प्रदरारिलोहम् कन्यानीरेण सम्म दिनमेकं भिषग्वरः ॥
(भै. र.; धन्व. । स्त्रीरो.) असाध्यं प्रदरं हन्ति भक्षणान्नात्र संशयः॥ वत्सकस्य तुलां सम्यग्जलद्रोणे विपाचयेत् ।
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, वंगभस्म, चांदी । अष्टभागावशिष्टन्तु कषायमवतारयेत् ॥ भस्म, खपरियाभस्म और कौड़ीमस्म ५-५ माशे | वस्त्रपूते घनीभूते द्रव्याणीमानि दापयेत् । तथा लोहभस्म ३॥ तोले लेकर प्रथम पारे गन्धक | समगां शाल्मलं पाठां बिल्वं मुस्तश्च धातकीम। की कजली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधे / अरुणां व्योमकं लौहं प्रत्येकन्तु पलंपलम् । मिलाकर सबको १ दिन ग्वारपाठा ( घीकुमार) | माषद्वयं प्रयुञ्जीत कुशमलपयो ह्यन । के रसमें धोटकर (३-३ रत्तीकी) गोलियां श्वेतं रक्तं तथा नीलं पीतं प्रदरं दस्तरम् । बना लें।
कुक्षिशूलं कटिशूलं देहशूलश्च सर्वगम् ॥ इनके सेवनसे असाध्य प्रदर भी निस्सन्देह | प्रदरारिरय लोहो हन्ति रोगान् मुदुस्तरान् । नष्ट हो जाता है।
आयुःपुष्टिकरश्चैव बलवर्णाग्निवद्धनः॥
६। सेर कुड़ेकी छालको ३२ सेर पानीमें (४४५०) प्रदरारिरसः ( प्रदररिपु ).
पकावें और ४ सेर पानी शेष रहने पर छानकर ( र. चं.; वैद्य र.; यो. र. । प्रदर.; वृ. यो. त. ।।
उसे पुनः पकाकर गाढ़ा करें और फिर उसमें त. १३५; वृ. नि. र. । स्त्रीरो.)
मजीट, मोचरस, पाठा, वेलगिरी, नागरमोथा, धायरसं गन्धं सीसं मृतमिति समं तैस्तु रस । केफूल और अतीसका चूर्ण तथा अभ्रकभस्म और समानं सर्वैः स्यात्तुलितमपि लोधं वृषरसैः॥ | लोहभस्म ५-५ तोले मिलाकर २-२ माशेकी
गोलियां बनालें। दिनं पिष्टं नाम्ना प्रदररिपुरेपोऽपहरति ।। द्विवल्लः क्षौद्रेण प्रदरमतिदुःसाध्यमपि च ॥
इन्हें कुशके काथके साथ सेवन करनेसे श्वेत
लाल काला और पीला दुस्साध्य प्रदर, कुक्षिशूल, शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक और सीसाभस्म
कटिशूल और शरीरकी पीडाका नाश होता तथा १-१ भाग तथा रसौत ३ भाग और लोधका
आयु, बल, वर्ण और अग्निकी वृद्धि होती है ।
आय. बल महीन चूर्ण ६ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी
प्रदीपनरसः कजली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियांका
(र. सा. सं.)
" राजवल्लभरस ” देखिये चूर्ण मिलाकर सबको १ दिन बासा (अडूसा)
(४४५२) प्रभाकरवटी के रसमें घोटकर ६--६ रत्तीकी गोलियां बनालें ।
( भै. र. । हृद्रोगा.) इन्हें शहदके साथ सेवन करने से दुःसाध्य | माक्षिकं लौहमभ्रश्च तुगाक्षीरी शिलाजतु । प्रदर भी नष्ट हो जाता है।
क्षिप्त्वा खल्लोदरे पश्चाद् भावयेत् पार्थवारिणा ॥
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