Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः ।
[ ४६७ ]
इस बत्तीको अण्डीके तेलमें अच्छी तरह । ओषधियों के रसमें १-१ दिन घोट कर कन्दुक
यन्त्र में पान कर लें | इस विधिसे पारदकी उत्तम भस्म बन जाती है ।
भिगो लें और उसके एक सिरेमें आग लगाकर दूसरे सिरेको चिमटेसे पकड़कर उसे उलटा लटकावें और उससे जो तैल गिरे उसे चीनी या कांच आदिके पात्रमें इकट्ठा कर लें । तदनन्तर उस तेलके नीचे बैठी हुई कृष्ण भस्मको नियामक २
सुहांजना, गिरिकर्णिका ( अपराजिता ), महाराष्ट्री ( जलपिप्पली), मार्केव ( भांगरा ), सेंधा नमक, सरणी (प्रसारणी - पसरन), सोमलता, पीली संसी, असन (विजैसार), हंसपदी, व्याघ्रपदी, कंटाई केशु, भिलावे और इंद्रायण । यह मारक वर्ग है । इन सब ओषधियांका या इनमें से किन्हीं १८ या ततोधिक ओषधियांका चूर्ण पारदसे आधा मिलाकर पारदको मूर्च्छित करने या भस्म करने के लिये प्रयुक्त करना चाहिये ।
२- नियामकगण ।
सर्पाक्षी वन्यकर्कोटी कचुकी यमचिञ्चिका । शतावरी शङ्खपुष्पी शरपुङ्खा पुनर्नवा ॥ मण्डूकपर्णी मत्स्याक्षी ब्रह्मदण्डी शिखण्डिनी । अनन्ता काकजङ्घा च काकमाची कपोतिका ॥ विष्णुक्रान्ता सहचरा सहदेवी महाबला । बला नागवला मूर्ध्ना चक्रमर्दः करञ्जकः ।। पाठा तामलकी नीली जालिनी पद्मचारिणी । घण्टा त्रिकण्टगोजिहा कोकिलाक्षघनध्वनिः ॥ आखुपर्णी क्षीरिणी च त्रिपुषी मेषशृङ्गिका । कृष्णवर्णा च तुलसी सिंहिका गिरिकर्णिका ।। एता नियामकौषध्यः पुष्पमूलदलान्विताः ॥
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पारदकी भस्म श्वेत, पीली, लाल और काली इस प्रकार ४ रंगकी बनती है । इनमें से श्वेत सबसे निकृष्ट, पीली उससे अच्छी, लाल पीलीसे अच्छी और कृष्णभस्म सर्वोत्तम होती है ।
नाकुलकंद, वांझककोड़ा, कंचुकी ( शिरीषवृक्ष ), खट्टी इमली, शतावर, शंखाहुली, सरफोंका, पुनर्नवा ( साठी ), मंडूकपर्णी (ब्राह्मी), मत्स्याक्षी ( सोमलता या हुलहुल), ब्रह्मदण्डी, शिखंडिनी ( पीले वर्ण की जूही ), शारिवा, काकजंघा, मकोह, कपोतिका ( नलिका), विष्णुक्रान्ता ( कोयल ), सहचरा ( पीया वांसा ), सहदेवी, महाबला, बला, नागबला (खरैटी के भेद), मूर्वा, ( मरोड़फली ), चक्रमर्द ( पनवाड़ ), लताकरंज, पाटला, पाठा, भूमीआमला, नीलनी, जालनी ( कड़वी तोरी ) पद्मचारिणी (गेंदा), घंटा ( कठपाडर ), गोखरु, गोजिह्वा ( गोजियाघास ), तालमखाना, चौलाई, मूसाकन्नी, क्षीरिणी (सत्या नाशी ), त्रिपुपी (खीरा), मेडासिंगी, काली तुलसी, सिंहिका (बड़ी कटेली ) और अपराजिता । ये सब नियामक ओषधियां हैं । इनके पुष्प, मूल और पत्र लेने चाहियें । इन में मर्दन करने से पारा स्थिर हो जाता है ।
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