Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[४९४]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
तदनन्तर यन्त्रके स्वांग शीतल होने पर । पित्तोत्तरे चामलशर्कराभ्यां उसमें से सम्पुटको निकालकर ताम्र सहित पीस . गव्येन दुग्धेन घृतेन पकम् ।। लें। और फिर उसे १-१ पहर गिलोयके स्वरस,
शुद्ध गन्धक, शुद्ध पारद, शुद्ध शिंगरफ त्रिकुटेके काथ और अदरकके स्वरसमें घोटकर | (हिंगुल ) और मोती समान भाग लेकर प्रथम पारे सुखाकर रक्खें।
गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य इसे ३ रत्तीकी मात्रानुसार यथोचित अनुपान | ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर सबको १-१ दिन के साथ देनेसे ज्वर नष्ट होता है।
गिलोय, कटसरैया, भंगरा, चीता और बछनागके नोट-यदि १ दिन की अग्निके बाद भी स्वरस या काथमें धोटकर १ भाग शुद्ध ताम्रके ताम्र कच्चा रह जाय तो उसे पुनः इसी प्रकार | सम्पुटमें बन्द करके उस पर कपड़मिट्टी कर दें पकाना चाहिये।
और फिर उसे १ दिन लवणयन्त्रमें पकावे ।। (४४१६) पीयूषघनरसः (२)
तदनन्तर उसके स्वांग शीतल होने पर उस (र. चं. । ज्वर.)
मेंसे सम्पुटको निकालकर ताम्रसमेत पीस लें;
और फिर उसे गिलोय, त्रिकुटा और अदरकके गन्धं रसेन्द्र दरदं च मुक्तां विमर्थ ताम्रस्य पुटे पुटेत ।
रस या काथमें १-१ पहर घोटकर रखें । पूर्वभकारेणगतौषधीभि
इसे यथोचित अनुपानके साथ देनेसे ज्वर, विमर्दितस्याऽथ ददीत वल्लम् ।।
शूल, अग्निमांद्य और कृशताका नाश होता है। ज्वरेषु सर्वेषु यथाऽनुपानः
शीतज्वरमें-तुलसीके रसमें काली मिर्च शूलेषु सर्वेष्वपि मान्धकार्ये ।
घोटकर उसके साथ ३ रत्ती यह रस देना चाहिये। शीतज्वरे श्रीतुलसीरसेन
उष्णज्वरमें-१ भाग दूधमें ४ भाग धनिये पिष्ट्वा मरीचानि ददीत वल्लम् ॥ का काथ मिलाकर दूध मात्र शेष रहने तक पकावें नीरस्य पादेन नियोज्य दुग्धं
और उसमें पीपलका चूर्ण डालकर उसके साथ __कुस्तुम्बुरीनीरथुतं पचेत । यह रस खिलावें। दुग्धावशेष कणया युतश्च
इकतरे ( एकाहिक ) ज्वरमें---चौलाईकी ददीत चोष्णज्वरनाशनाय ।।
जड़को चावलों के पानीके साथ पीसकर उसके एकाहिके तण्डुलवारिपिष्टं
साथ खिलावें। ददीत मेघध्वनिमूलचूर्णम् ।
चातुर्थिकज्वरमें----१ कर्ष भांग और त्रिकुटे चातुर्थिकादौ विजया विडाल
के चूर्णके साथ खिलावें । ( भाग १ माशा और पादप्रमाणं कटुकत्रयेण ॥ त्रिकुटा १ माशा लेना चाहिये ।)
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