Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य रत्नाकरः ।
[ ४९२ ]
(४४०९) पित्तार्शोहररसः ( र. र. स. | अ. १५ ) मृतमूतार्कमा तीक्ष्णमुण्डं सगन्धकम् । मण्डूरं माक्षिकं तुल्यं मये कन्याद्रवैर्दिनम् ॥ अन्धभूषागतं पाचयं त्रिदिनं तुपवह्निना । चूर्णितं सितया मापं खादेत्पित्तार्शसां जयेत् ॥
पारदभस्म, ताम्र भस्म, स्वर्णभस्म, अभ्रक भस्म, लोहभस्म, मुण्डलोहभस्म, शुद्ध गन्धक, मण्डूरभस्म और स्वर्णमाक्षिक भस्म समान भाग लेकर सबको १ दिन घृतकुमारी ( ग्वारपाठा ) के रस में घोटकर अन्धमूषा में बन्द करके ३ दिन तक तुषामें पकावें । ( एक बड़े हण्डेमें आधी दूर तक धानकी भूसी खूब दबा दबाकर भर दें और फिर उसमें मूषाको रखकर उसके ऊपर भी भूसी भरकर हण्डेको चूल्हेपर रखकर पकायें । ) तदनन्तर उसके स्वांग शीतल होनेपर उसमेंसे रसको निकाल कर पीस लें ।
इसे १ माशेकी मात्रानुसार मिश्री के साथ खानेसे पित्तार्शका नाश होता है । (४४१०) पिप्पलीलोहयोगः
(ग. नि. । उदर. )
पिप्पलीलोहचूर्ण वा पयसाप्लीहनाशनम् ।
पीपल के चूर्ण और लोह भस्मको दूधके साथ सेवन करनेसे तिल्ली नष्ट होती है ।
( मात्रा - ४ रत्ती )
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[ पकारादि
(४४११) पिप्पल्यादिलोहम् (१) (भै. र. र. रा. सु. र. चि.; र. चं.; र. सा. सं.; धन्व; र. र. । हिक्काश्वासा. ) पिप्पल्याम लकीद्राक्षाको लाऽस्थिमधुशर्कराविडङ्गपुष्करैर्युक्तं लौहं हन्ति सुदारुणाम् || छर्दि हिक्कां तथा तृष्णां त्रिरात्रेण न संशयः ॥
पीपल, आमला, दाख (मुनक्का), बेरकी गुठली की गिरी, शहद, मिश्री, बायबिडंग और पोखरमूल १ - १ भाग तथा लोहभस्म आठ भाग लेकर चूर्ण योग्य चीज़ोंका चूर्ण करके सबको एकत्र मिलाकर सेवन करनेसे भयङ्कर छर्दि, हिचकी और तृष्णा ३ दिनमें अवश्य शान्त हो जाती है ।
( मात्रा ४ रत्ती | अनुपान शहद । ) (४४१२) पिप्पल्यादिलोहम् (२) (र. सा. सं.; र. चि.; र. र. र. रा. सुं. । उदरा.) पिप्पलीमूलचित्राऽभ्रत्रिकत्रयेन्दुसैन्धवम् । सर्व चूर्णमं लौहं हन्ति सर्वोदरामयम् ॥
पीपलामूल, चीतामूल, अभ्रक भस्म, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, तेजपात, इलायची, दालचीनी, कपूर और सेंधा नमकका चूर्ण १ - १ भाग तथा लोहभस्म सबके बराबर लेकर सबको एकत्र मिलाकर अच्छी तरह खरल करके रखें ।
इसके सेवन से समस्त उदररोग नष्ट होते हैं ।
( मात्रा - ४ रत्ती । अनुपान - शहद । ) (४४१३) पिष्टोरस:
( र. चं. । वातरो.; रसे. चि. । अ. ९ ) बाणभागं शुद्धभूतं द्विगुणं गन्धमिश्रितम् । नागबल्लिदलैः पिष्टं ततस्तेन प्रलेपयेत् ॥
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