Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम् ] हतीयो भागः।
[४६५ (४३४५) पारदभस्मविधिः (८) । स्याल्यामुत्यापनं कृत्वा अप्रियामाष्टकं ददेव । (र. सा. सं. । पू. ख.; र. मं. । अ. २: र. रा. | स्वागशीतं समुदत्य भस्मसूतोद्धपातनम् ॥ सु.; भा.प्र.; शा. ध.)
योजयेत्सर्वरोगेषु कुर्य्याद्वहुतरं क्षुषाम् । भुजङ्गवल्लीनीरेण मईयेत्पारदं दृढम् ।
पुष्टिदं वर्द्धते कामः योजयेद्रक्तिकाद्वयम् ॥ कर्कटीकन्दमूषायां सम्पुटस्थ पुटेद्जे ॥
___शुद्ध पारा १ भाग, सेंधानमकका चूर्ण १ भस्मतधोगवाहि स्यात्सर्वकर्मसु योजयेत् ॥
भाग, सोमल ( संखिया ) आधा भाग, मीठा विष
(बछनाग) चौथाई भाग तथा हींग, फटकी, ___ पारेको नागरबेलके पानके रसमें अच्छी तरह
गेरु आर समुद्र लवणका समानभाग-मिश्रित घोट कर ककोड़े की जड़की मूषामें रखकर उसे
चूर्ण इन सबके बराबर लेकर सबको एकत्र मिला शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें फूंकनेसे कांजी में अच्छी तरह घोटें फिर इन्द्रायणकी उसकी योगवाही भस्म बन जाती है ।
जड़के स्वरसमें घोटफर डमरु यन्त्रमें रखकर ८ (४३४६) पारदभस्मविधिः (९) | पहरकी आग दें और यन्त्रके स्वांग शीतल हो (र. मं. । अ. २)
जाने पर उसे खोलकर ऊपरकी हांडीमें लगी हुई
पारद भस्मको निकाल लें। द्वपलं शुद्धमूतं च सूतार्दै शुद्धगन्धकम् ।।
इसे २ रत्तीकी मात्रानुसार सेवन करनेसे कन्यानीरेण सम्म दिनमेकं निरन्तरम् ॥ अत्यन्त क्षुधा वृद्धि होती, शरीर पुष्ट होता और रुद्धा तद्भूधरे यन्त्रे दिनैकं मारयेत्पुटात् ॥ | कामशक्ति बढ़ती है ।
१० तोले शुद्ध पारद और ५ तोले शुद्ध | (४३४८) पारदभस्मविधिः (११) गन्धककी कज्जली करके उसे १ दिन निरन्तर
(र. रा. सु.) घृतकुमारी ( ग्वारपाठा ) के रसमें घोटकर शराव- वटक्षीरेण सूताभ्रौ मर्दयेत्महरद्वयम् । सम्पुट में बन्द करके भूधरयन्त्रमें पकानेसे १ दिन | पाचयेत्तेन काठेन भस्मीभवति तद्रसः ॥ में.ही पारदभस्म बन जाती है।
शुद्ध पारद और अभ्रकको दो पहर तक
बड़के दूधमें घोटकर लोहेकी कढ़ाई में बड़की हरी (४३४७) पारदभस्मविधिः (१०)
लकड़ीसे घोटते हुवे पकानेसे पारदकी भस्म बन (र. रा. सुं)
जाती है। शुद मृतं समं सिन्धुं सोमलं च तदर्धकम् ।। (४३४९)पारदभस्मविधिः (१२) सोमलादै विषं लिप्त्वा हिस्फटिकगैरिकम् ॥
(र. रा. सु.) सामुद्रलवणं चैव सर्वतुल्यं विनिक्षिपेत् । कृष्णधतूरतैलेन सूतो मयों नियामकैः । काधिकेन पुटं दद्यात्पुटित्वा चेन्द्रवारुणीम् ॥ ' दिनैकं तं पचेयन्त्रे कच्छपाख्ये न संशयः ।।
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