Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरण
हतीयो भागः।
[४६३]
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महात्मा हो सकता है जो कि लोभवासनाको छोड- । (४३३९) पारदभस्मविधिः (२) कर पारदकी सेवासे समस्त लोकका कल्याण । (र. र. स. 1 पू. खं. अ. ११; र. रा. सुं) चाहता है और जिस क्रियाका अपनेको अनुभव | अपामार्गस्य बीजानि तथैरण्डस्य चूर्णयेत् । हो उसका मार्ग सब किसीको बतला देता है। । तच्चूणे पारदे देयं मृषायामधरोत्तरम् ।।
रुध्वा लघुपुटैः पच्याश्चतुर्भिर्भस्मतां नयेत् ॥ सक्षेपेण बुभुक्षितपरीक्षा
__ अपामार्ग (चिरचिटे) के बीज और अरण्डीके गालनेरूलपातशेत स्वर्ण नायाति हक्रपथम। | बीजोंकी मींग समान भाग लेकर दोनोंको एकत्र मूलमानं च यत्रास्ते जानीयात्तं बुभुक्षितम् ॥ कूट लें । तत्पश्चात् शुद्ध पारदके नीचे ऊपर यह
चूर्ण रखकर उसे शरावसम्पुट में बन्द करके लघुपुट संक्षेपसे बुभुक्षितपारदको पहिचान
में फूंक दें।इससे ४ पुट में पारदकी भस्म बन जाती है। बुभुक्षाविधिके अनुसार पारदको बुभुक्षित |
| (४३४०) पारदभस्मविधिः (३) करके उसमें स्वर्णग्रास देकर कपड़ेमें छानकर
(यो. र.) परीक्षा करे यदि कपड़ेमें सोना नहीं बचे तो उसको
शुद्धसूतं समं गन्धं वटक्षीरैर्विमर्दयेत् । डमरुयत्रमें रखकर अग्नि लगाकर उड़ा ले, यदि | पाचयेन्मृत्तिकापात्रे वटकाठैविघट्टयेत् ।। नीचेकी हांडीमें भी सुवर्ण दृष्टि नहीं आवे तो
लध्वाग्नना दिनं पाच्य भस्मसूतं भवेधुवम् । फिर तौलकर भी देखले, सुवर्णप्रास देनेसे पहिले
द्विगुञ्ज पर्णखण्डेन पुष्टिमग्निं च वर्धयेत् ॥ जो पारदका वज़न था वही बज़न यदि ग्रासके
समान-भाग शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धककी जीर्ण होनेपर भी मिले, यानी सुवर्णका भार नहीं
कज्जली बनाकर उसे (१ दिन) बड़के दूधमें धोटें, बढ़े तब उसको बुभुक्षित समझे ।
तदनन्तर उसे मिट्टीके मजबूत पात्रमें डालकर (४३३८) पारदभस्मविधिः (१) मन्दाग्नि पर पकावें ओर पकाते हुवे बड़की (हरी) (र. र. स. । पू. खं. अ. ११)
लकड़ीसे घोटते रहें । इस क्रिया से १ दिनमें ही
पारदभस्म बन जाती है । अकोलस्य शिफावारिपिष्टं खल्वे विमर्दयेत् । इसमेंसे २ रत्ती दवा पानमें रखकर खानेसे सूतं गन्धकसंयुक्तं दिनान्ते तं निरोधयेत् ॥
शरीर पुष्ट होता और अग्निकी वृद्धि होती है । पुटयेदभूधरे यन्त्र रात्रैकेन मृतो भवेत् ॥ (४३४१) पारदभस्मविधिः (४) ___ समानभाग पारद और गन्धककी कज्जलीको (र. रा. सु. । रसा. वाजी.) अकोलकी जड़के रसमें १ दिन घोटकर शराव- | शुद्धं सूतं द्विधा गन्धं लोहपात्रेमिसंस्थिते । सम्पुट में बन्द करके भूधरयन्त्रमें पकानेसे १ दिनमें | आर्द्रन्यग्रोधदण्डेन चालयेद्भस्मतां नयेत् ।। ही भस्म हो जाती है।
रक्तिकाद्वितयं भुक्तं रेतः पुष्टिकरं परम् ॥
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