Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[४६१ ]
विमईयेनिम्बुरसेन पश्चात्
| पारदकी प्रचण्डबुभुक्षा सेटं रसं सूतबिडाष्टमांशैः॥
तीसरी विधिअवाप्य योगं खलुमूतराजो
काली वज्राभ्रकका सत्व अथवा भस्मके दो बिडस्य सत्त्वानि बुभुक्षतेऽयम् ।। सत्त्वं च तद्योगविलीनमूर्ति
भाग (आधसेर), सुवर्णमाक्षिकका सत्त्व अथवा पलीय मूतात्मनि जारितं स्यात् ॥
भस्मका एक भाग (पाव भर) लेकर दोनोंको नीबू
के रसके साथ दो तीन दिन तक खूब घोटे; बादको सम्मईनै तविशोषकल्कं
उसके साथ एक सेर हिंगुलोत्थ या शुद्ध पारदको यन्त्रे डमर्वाख्यक उद्धरेत । भूयश्च काञ्जीपतिसारणीयैः
बिडयोगसे खूब धोटे पारदसे अष्टमांश बिडी डाला पाच्येत सूतेऽभ्रकसत्त्वकश्च ।।
जाता है। बिडके सम्बन्धसे पारद अभ्रकादिके एवं विमर्नेदुपपश्चवारान्
सत्त्वोंको अच्छी तरह खा जाता है, और सत्व भी जीर्णेऽभ्रसत्वे क्षतपक्षता स्यात् ।
बिडके सम्बन्धसे द्रुत होकर पारदमें मिलकर जीर्ण सपर्षितोत्यापितमूतराजो
हो जाता है । पूर्वोक्त पांचों चीजों (अभ्रक भ्रभस्मयोगैस्तु भवेद् बलीयान् ।।
सत्त्व या भस्म, स्वर्ण माक्षिक सत्व या भस्म, शिवारजो गन्धकमभ्रसत्त्वं
नीबूका रस, पारद, बिड,) का कल्क जब मर्दन तच्छुक्रमेवर्षय आमनन्ति । करते करते सूख जाय तब डमरूयन्त्रमें रख समाभ्रक्यासमवाप्य मूतो
कर चार पहरकी अग्नि दे । स्वाङ्ग शीतल होनेके बलेऽतिशेते शतजीर्णगन्धात् ॥
विडविधिः सत्त्वरधानं खलु वनमनं
मूलार्द्रवहीन ज्वलने प्रदाह्य तद्भस्मयोगेन मयाऽपि सूतः । क्षारैर्गवां मूत्रकृतैश्च तेषाम् । बलेऽनुभूतोऽतिशयान ईशात्
शतं शतं भावितगन्धकोऽयं षड्जीर्णगन्धाद् बिडयोगयुक्तः ॥ बिडो मतो जारणकर्मकारी ॥ अतोऽभ्रसत्त्वं ननु मूतराजे
__एक मन मूली, एक मन अदरक (आदा), एक __ सारयेयुर्यदि वैद्यराजाः। मन चित्रक | तीनोंको सुखाकर जलालें, उस भस्मको प्रचण्डक्षुत्खादितसर्वधातुं
नांदमें डालकर १० सेर गोमूत्र भर दें। ४ दिनके
बाद "क्षारविधि" में कही हुई विधिके अनुसार निर्मल मन्ये तमन्येऽपि फलं नयन्ते ।
गोमूत्रको निकाल लें। पश्चात् उसी क्षारमिश्रित गोमूत्र चराचरव्यापिरसेन्द्रभूमा
से सैकड़ों बार भावना देकर गन्धकको तैयार कर लें। निषेव्यमाणस्सततं यदि स्यात् । इसी गन्धकको “बित ' कहते हैं। जब पारदमें (चन्द्रोदय मेत्येह चानन्तसुखं दवीयो
बनाने के लिये ) स्वर्ण ग्र.स देते हैं तब इस बिडके नास्तीति वैश्येन मयानुभूतम् ॥ साथ घोटनेसे स्वर्ण पारदमें शीघ्र पच जाता है।
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