Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[४५६]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
न पाप्य जीर्णत्वमितं हिरण्यं
सुवर्णकी गोलीसी बच जाय तो समझ ले कि अभी स्यादृर्द्धहण्ड्यास्तलधाम नूनम् ॥ पूर्ण बुभुक्षित नहीं हुआ है, तो फिर पूर्वकी तरह हेमापि सूतेन सहैति हण्डी
क्षारवर्ग तथा अम्लवर्ग ( काजी आदि) में स्वेदन मनेकसंस्कारयुतेति शङ्का । मर्दन करे जिससे कि बाकी बचा हुआ सुवर्ण भी कृताकृतग्राससमानमानं
निःशेष हो जाय । यहां पर कितनेक विद्वासूतेन्द्रमालोक्य निवर्त्तनीया ॥ ने की यह शङ्का है कि वस्त्र के द्वारा सुवर्णसहित केचित्तु संस्कारगृहीतशक्तिं
सम्पूर्ण पारद निकल जानेसे बभुक्षित नहीं समझा श्रीमृतराज परिगृह्य हेम । जा सकता, क्योंकि पारद एक ऐसी सूक्ष्म वस्तु सहैव तेन स्थितिमन्तमाहु
है कि जिसके साथ सुवर्णको अत्यन्त घोटनेसे बुभुक्षितं हैमनगौरवाट्यम् ।। सुवर्ण इतना सूक्ष्म हो जा सकता है कि पारदके जैनागमस्त्वाह शतककर्षा
साथ ही साथ वस्त्रसे निकल जाय तो कौन आहेनो रसे कर्पमिते व्रजन्ति । श्चर्य है ! तब ऐसी दशामें बुभुक्षित पारदकी लयं यथा मूर्च्छति नापि भारो
पराक्षा किस प्रकार हो? इसका समानिष्कास्यते चापि ततः सुवर्णम् ॥
धान यह है कि उस पारद को डमरुयन्त्रमें रखतथात्मदेशे निचितस्वरूपाः
कर एक पहरकी अग्नि देकर उठाले । जब यन्त्र शुभाऽशुभाः पौद्गलकर्मवर्गाः ।। स्वाङ्गशीतल हो जाय तब उसकी मुद्राको खोल निरस्तभाराः पुनरात्मदीपे
कर डमरुयन्त्रकी नीचेकी हांडीमें देखे, जो सुवर्ण दीप्ते तमांसीव पृथग् भवन्ति ॥ नहीं मिले तो बुद्धिमान् समझ ले कि पारद सम्पूर्ण बुभुक्षितपारदको परीक्षा- सुवर्णको खागया है, अर्थात् असली बुभुक्षित हो
अर्थ--पूर्वोक्त विधिके अनुसार पारदको । गया है, क्योंकि यदि कुछ भी सुवर्ण बाकी रहा बुभुक्षित करके इस प्रकार परीक्षा करे कि बुभु- होता तो नीचेकी हाँडीमें जरूर मिलता, कारण क्षित पारदमें शुद्ध किया हुआ चौथाई सुवर्ण डाल- कि पारदकी तरह सुवर्ण तो उड़नेवाली चीज है कर दो दिन तक घोटे, बाद गाढ़े कपड़ेमें छाने ।। नहीं, जो कि पारदके साथ साथ उड़ जाती यदि वस्त्रके ऊपर कुछ भी बाकी नहीं रहे, किन्तु यदि मुद्रा खोलनेके बाद नीचेकी हाँडीमें कुछभी सम्पूर्ण वस्त्र से निकल जाय तो उसको बुभुक्षित सुवर्ण मिल जाय तो समझ लेना चाहिये कि पारसमझे । क्योंकि जो पारद बुभुक्षित नहीं हुआ। दके बुभुक्षित होने में अभी कुछ कसर है। तब होता तो कपड़ेके ऊपर कुछ न कुछ सुवर्ण अवश्य | फिर पूर्वकी तरह स्वेदन मर्दन करे । इसप्रकार बचता । यदि वस्त्रमें छाननेके समय पारद चार छः बार करनेसे सम्पूर्ण स्वर्ण जीर्ण हो जायगा, तो वस्त्र से निकल जाय और कपड़े के ऊपर कुछ और डमरुयन्त्रकी नीचेकी हांडीमें मलस्थानापन्न
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