Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
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हैं गर्भको हितकारी हैं और अनेक अनुपानसे सभी | दृष्टान्त यह है कि पारदगन्धककी कजलीमें सैकनों रोगोंको नष्ट करते हैं ) ये गुण लिखे हैं । तथापि औषधियोंकी भावना देकर सिन्दूरादि रस बन पारदमें ग्रास देनेके लिये बजारु सुवर्णपत्र ठीक | जाते हैं और उनमें पृथक् पृथक् सैकड़ी ही प्रका. नहीं किन्तु सुवर्ण प्रकरणमें लिखी हुई विधिके । रके गुण भी देखे जाते हैं । इससे यह सिद्ध हुआ अनुसार शुद्ध किये हुए सुवर्ण को ही ग्रास देना | कि कृत्रिम सुवर्णग्राससे पारदमें सुवर्णके गुण नहीं उचित है क्योंकि वोंकी अपेक्षा शोधा- | आवेंगे किन्तु मूलधातु ताम्रादिके ही गुण आयेंगे । हुआ सुवर्ण कम दाममें ही पड़ जाता है, और बुभुक्षितपर क्षिा-- वोंको बाजार में खरीदते फिरो, शोधना तो अपने | विमर्दनादृष्टसुवर्णमृतो हाथका काम है, जब चाहे शोध ले, और अपने
___घनेन वस्त्रेण च गालनीयः । हाथकी बनी हुइ वस्तुमें सन्तोष भी रहता है, निःशेषतां यन्न वस्त्रशिष्टः और सब से अधिक बात यह है कि शास्त्रोक्त |
शिष्टैः स दिष्टश्च बुभुक्षुरेव ॥ विधिसे शुद्ध किया हुआ सुवर्ण वर्केकी अपेक्षा | समाल्यमानोपि पटेन मूतो। अवश्य गुणमें कहीं अधिक होगा। इत्यादि युक्ति- | याशिष्यते चेद्गुलिकात्मकस्तु । यांसे शोधित सुवर्णका ही प्रास देना चाहिये । | स्वेद्यश्च मर्यश्च पुनःपुरोध अब दूसरी बात यह और है कि सुवर्ण जहयाधतोसौ निजशेषभावम् ।। दो प्रकारका होता है, एक खानसे निकला हुआ, संशेरते केचन बुद्धिपश्याः दूसरा कृत्रिम ( रसायन विधिसे तांबा चांदी आदि
सूतातिसंघर्षितहेमधातुः। धातुओंका बनाया हुआ)। इन दोनों में से खान- सूक्ष्मस्वरूपेण घनेपि वस्त्रे के सुवर्ण को शोधन करके पारदको ग्रास देना निर्याति चेदत्र किमस्ति चित्रम् ॥ चाहिये । कृत्रिम सुवर्ण शोधा हुआ भी पारदमें उद्धृत्य मूतं डमरुक्रियातः ग्रास योग्य नहीं है । क्योंकि कृत्रिम सुवर्ण के | पश्येदधस्तास्थितहण्डिकायाम् । प्राससे पारदमें सुवर्णका गुण नहीं आसक्ता, किन्तु । स्वर्ण न यायाधदि दृक्पथ ज्ञो वह सुवर्ण यदि ताम्रका बना होगा तो ताम्रके | जीर्ण रसे वेत्तु हिरण्यमत्र ॥ गुण आवेंगे, यदि चांदीका बना होगा तो चांदीके | चेच्छिष्यते किञ्च न इण्डिकायां गुण आवेंगे, यदि सीसेको चांदी बनाकर उस तन्मर्दनस्वेदनकर्म कुर्यात् । चादीका सोना बनाकर ग्रास दिया जायगा तो एवं विधानरुपपञ्चवारै पारदमें सीसेके गुण आवेंगे इसमें युक्ति निःशेषतामेति समादधामि ॥ यह है कि कार्य अपने कारणके गुणको कभी स्वर्ण यतो नोडयितुं क्षमेत नहीं छोडता है । इस बातकी पुष्टिके लिये स्पष्ट सूतेन्द्रवत्कश्च न येन शङ्की ।
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