Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[४१५]
पुटेन गजसंज्ञेन स्वतः शीतं विचूर्णयेत् ॥ : मूषा को बन्द कर के उस के ऊपर कपरमिट्टी कर चतुर्गुणेन गन्धेन निर्मितां रसकज्जलीम् । के मुखा लें और रात में गजपुटमें फूंक दें। जब क्षिप्त्वा पूर्वरसे लुङ्गवारिणा परिमर्दयेत् ॥ सम्पुट स्वांग शीतल हो जाय तो उसमें से औषध पचेत्क्रोडपुटेनैव दशवारमतः परम् ।। को निकालकर पीस लें। फिर ११ तोला पारद एवं तालककज्जल्या दशवारं पुटेत्ततः॥ और ५ तोले गधन्क की कज्जली बनाकर उसे ततश्च मृतवैक्रान्तभस्मना च कलांशतः । उपरोक्त चूर्ण में मिलाकर १ दिन जम्बीरी नीबूक ततो विचूर्ण्य यत्नेन करण्डान्तर्विनिक्षिपेत् ॥ रस में घोटें और टिकिया बनाकर सुखाकर उन्हें अयं पञ्चाननो नाम देवराजेन कीर्तितः।। सम्पुट में बन्द करके बराहपुट में फूंक दें। इसी श्रेष्ठः सर्वरसेन्द्रेषु महारससमो गुणैः ।।। प्रकार दस आंच लगावें । हर बार कज्जली मिला पथ्यामरणशुण्ठीभिः सघृताभिनिषेवितः ।।
कर जम्बीरी के रस में धोटना चाहिये । इस के सर्वान्पाण्डगदान्हन्ति कृतघ्न इव सन्कृतिम् ॥
। पश्चात् १। तोला हरताल को ५ तोले पारदमें यक्ष्माणं जठरं हलीमकरुजं वातातिविड्वन्धनं,
| मिलाकर घोटकर कज्जली बनावें और इसे उक्त कुष्ठं च ग्रहणीं ज्वरातिसरणं श्वासं च कासा
तैयार औषध में मिलाकर एक दिन नीबू के रस में
घोटें और टिकिया बनाकर, सुखाकर उन्हें सम्पु
चा।। बन्द करके बगह पट में पं । इसी प्रकार श्लेष्मव्याधिमशेषतो गलगदान्दु ममन्दाग्नितां, हरताल और परिकी कजलीके साथ १० पुट दें। मेहं गुल्मरुजं च किं वहुगिरा हन्याद्गदान्दु
स्तरान् ॥
तत्पश्चात् उसमें उसका १६ वां भाग सेव्यमाने रसे चास्मिन्बिलमेकं च वर्जयेत । वैक्रान्त भस्म मिलाकर सुरक्षित रक्खें । स्वस्थः सर्व समश्नीयाद्गदी पथ्यं गदापहम् ॥ । इसमें से नित्य प्रति १ रत्ती औषध हर्र, ___ कान्तलोह भस्म, सोने की भस्म, ताम्र भस्म, सूरण (जमीकन्द) और सेठके (३ माशे) चांदी भरम और अभ्रक भस्म ११-१। तोला तथा चूर्णको धीमें मिलाकर उसके साथ सेवन करने से पारे और गन्धक की कज्जली इन सब के बराबर समस्त प्रकारके पाण्ड, राजयक्ष्मा, उदररोग, ह्लीलेकर सब को एकत्र मिलाकर घोटें । तत्पश्चात् मक, वातव्याधि, मलावरोध, कुष्ठ, संग्रहणी, ज्वराउसमें २॥ पल (१२॥ तोले) शुद्ध सोनामक्खीका तिसार, श्वास, खांसी, अरुचि, सब प्रकारके कफचूर्ण मिलाकर अच्छी तरह घोटें । तत्पश्चात् एक रोग, गलरोग, अर्श, मन्दाग्नि, प्रमेह और गुल्म मूषामें १० तोले हरताल का चूर्ण बिछाकर उसके आदि दुस्साध्य रोग नष्ट हो जाते हैं । इसके ऊपर उक्त कजली को रक्खें और फिर उसपर सेवन कालमें बेलके सिवाय समस्त पथ्य १० तोले शुद्ध मनसिल का चूर्ण बिछा दें । इस पदार्थ खाने चाहिये।
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