Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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धूपप्रकरणम् ]
गेरु और रसौत । सब मिश्रित चूर्णको पानी में आगन्तुक और रक्तज शोथ नष्ट होता है । (३१५७) द्विनिशादिलेप: (२) ( वं. से. । विषरो. ) द्विनिशा गैरिकं लेपो नखदन्तविषापहः ।
तृतीयो भागः ।
[ ९५ ]
चीज़ों के समान भाग | गोजिह्वामधुना लेपो नखदन्तविषप्रणुत् || पीसकर लेप करनेसे
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इति दकारादिलेपप्रकरणम् ।
अथ दकारादिधूपप्रकरणम्
पै. रह. । फिरंगवा. )
(३१५८) दरदादिप्रयोगः (वै. शाणं हिङ्गुलकं शाणं कुनट्या यवचूर्णकम् । शाणद्वादशकं बद्धा वटीं बदरसन्निभाम् ॥ दमूलशिखिना प्रक्षिप्यैकां वटीं प्रमे । सायं धूमं गुदे दद्याद्धन्तिमाम फिरङ्गकम् ॥ वातं न चात्र सन्देहो नुर्निर्वात स्थितस्य च । परित्यक्त पटोः सप्त दिनाद्वा द्विगुणावधेः ॥
हिंगुल ( शिंगरफ) ५ माशे, मनसिल ५ माशे और जौका आटा ५ तोले लेकर सबको एकत्र घोटकर पानीकी सहायतासे बेरके बराबर गोलियां बनावें ।
हल्दी, दारु हल्दी और गेरु अथवा गोजिह्वा के चूर्ण को शहद में मिलाकर लेप करनेसे दन्त और नख जनित विष नष्ट होता है ।
रहना चाहिये तथा सात दिन अथवा १४ दिन तक नमक न खाना चाहिये ।
(धूनी चारपाई, बेतसे बुनी हुई कुरसी या छिद्रयुक्त मूढे पर बैठकर ऊपरसे चादर ओढ़कर लेनी चाहिये | )
( पथ्य - बेसनकी रोटी और घृत । ) (३१५९) दशाङ्गधूप: (१)
( वा. भ. । उ. अ. ३ ) वचाहिङ्गानि सैन्धवं गजपिप्पली । पाठा प्रतिविषा व्योषं दशाङ्गः कश्यपोदितः ।।
बच, हींग, बायबिडंग, सैंधा, गजपीपल, पाठा, अतीस, सोंठ, मिर्च और पीपल । सबका चूर्ण समान भाग लेकर मिलावें ।
१ गोली प्रातः काल और १ सायंकाल बेरीके कोयले की आग पर डालकर गुदाको उसका धुवां देना चाहिये ।
(३१६०) दशाङ्गधूप: (२)
इस प्रयोगसे फिरंगरोग (आतशक ) अवश्य नष्ट हो जाता है ।
( वं. से; धन्वन्तरि । विषरो. ) बिल्वपुष्पत्वच मांसी फलिनी नागकेसरम् ।
इस प्रयोग में रोगीको वात रहित स्थान में शिरीषं तगरं कुष्ठं हरितालं मनःशिला ||
( इसकी धूप देने से बालकों के ग्रहदोष नष्ट होते हैं । )
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