Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[२२९]
नागरमोथा बायबिडंग और चीतेका चूर्ण तथा । अनार, खाडका शर्बत, दाख और दही देना चाहिए लोहभस्म १-१ भाग लेकर सबको एकत्र मिला- तथा आहारमें तकभात खिलाना चाहिये । कर ईखके रसके साथ घोटें तत्पश्चात् उसमें ८ । (३६१३) नष्टपुष्पान्तकरसः भाग मण्डूर भस्म मिलाकर १ दिन ईखके रसमें |
(र. चं. । स्त्रीरो.) घोटकर रखें।
रसेन्द्रं गन्धकं लौहं वङ्ग सौभाग्यमेव च । ___ इसे शहद और घीके साथ सेवन करनेसे रजतानं च तानं च प्रत्येकं च पलं पलम् ॥ पाण्ड, हृद्रोग, प्रवृद्ध, कामला, अर्श और हलीमक गुडूचीत्रिफलादन्तीशेफालीकण्टकारिका । रोग नष्ट होता है।
दारुजीवन्तीकुष्ठश्च बहतीकाकमाचिका ॥ (मात्रा-१ माशा।)
नक्तं तालीसवेत्राग्रं श्वदंष्ट्रा वृषकम्बला ।
एतेषां स्वरसैर्भाव्यं त्रिवारं च पृथक् पृथक् ॥ (३६१२) नव्यचन्द्ररस: (र. चिं. । स्त. ११; र. रा. सुं. । ज्वर.) ।
| सैन्धवं मधुकं दन्ती लवङ्ग वंशलोचनम् । शम्भोर्षीज गलगतमथाङ्कोलबीजं च तीक्ष्णम् ।
रास्ना गोरबीजं च शाणमानं विचूर्णयेत् ॥ चेतो धात्री समलवमिदं मार्कवं वेदभागम् ॥
पण सर्वमेकी कृतं पेष्य जयन्तीतुलसीरसैः ।
" मर्दयित्वा वटीं कुर्याबष्टपुष्पकयोषिताम् ॥ श्लक्ष्णं पिष्ट्वा दहनसलिलैर्याममात्र त्रियामम्।
का नष्टपुष्पे नष्टशुक्रे योनिशूले च शस्यते । भृङ्गस्याद्भिर्भवति रसराण्नव्यचन्द्राभिधानः ।।
| योनिदाहे क्लेदयोन्यां नष्टपुष्पान्तको भवेत् ॥ वल्लं निम्बाईकभवरसैः सेवितो याममात्रा
पारा, गन्धक, लोहभस्म, बंगभस्म, सुहागेकी चित्रं हन्याज्ज्वरमभिनवं तस्य तीव्रत्वशान्त्यै ।। दद्यादिक्षन्मधुरसयुतं दाडिमं शर्कराश्च ।
खील, चांदीभस्म, अभ्रक भस्म और ताम्र भस्म ।
हरेक ५-५ तोले लेकर सबकी कज्जली करके द्राक्षामुख्यं सदधिवितरेत्पथ्यमन्नं सुतक्रम् ॥
उसे गिलोय, त्रिफला, दन्ती, हारसिंगार, कटेली, पारद भस्म, शुद्ध बछनाग (मीठातेलिया),
मकोय, हल्दी, तालीस पत्र, बेतकी गोभ, गोखरु, अकोटके बीज, फौलादभस्म और चूका १-१
बासा और खरैटी में से हरेकके स्वरस (या काथ) भाग तथा भंगरा ४ भाग लेकर सबको एकत्र खरल
की पृथक् पृथक् ३-३ भावना दें। तत्पश्चात् करके १ पहर चीतेके काथ और ३ पहर भंगरे ।
सेंधानमक, मुलैठी, दन्तीमूल, लौंग, बंसलोचन, के रसमें घोटें।
रास्ना और गोखरु का १-१ शाण इसमें से ३ रत्ती औषध नीम या अद्रकके
( वर्तमान तोलसे हरेकको ५–माशे) चूर्ण उक्त रसके साथ देनेसे नवीन ज्वर १ पहर में ही उतर | औषधमें मिलाकर उसे १-१ दिन जयन्ती और जाता है।
तुलसीके रसमें घोटकर (१-१ रत्तीकी) गोलियां यदि इसके सेवनसे दाह हो तो ईख, मीठा । बना लें ।
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