Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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हमकरणम् ]
हरेको पीसकर तेल, घी, और शहद में मिलाकर चाटने से दाह, ज्वर, खांसी, रक्तपित्त, वीसर्प, श्वास और वमनका नाश होता है ।
(हर्रका चूर्ण ३ माशे, घी ३ माशे, तैल ३ माशे, शहद १ तोला )
(४०१९) पथ्यावलेह:
( ग. नि. । लेहा.; वृं. मा. । अर्शो. ) श्यामागुडूच्यामलक चित्रकाणां
पादावशिष्टं विधिवद्विधिज्ञः ।
भागान् पलानां शतसम्मितांश्च । सर्वान् पृथक् सम्परिकल्प्य युक्त्या
द्रोणद्रयेऽपां तु विपाच्य पात्रे || लौहे दृढ़े मन्दहुताशनेच
भूयः पचेत्तं तुलया गुडस्य
शुक्रेन वस्त्रेण विशोधितस्य ॥ चूर्णीकृतैर्जीरकयुग्मदन्ती
पाठात्रित्त्र्यूषणग्रन्थिकाद्वैः ।
भल्लातकाख्यैश्च पलप्रमाणेः ॥
तृतीयो भागः ।
धान्याजमोदेभकणायवानी
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प्रस्थत्रयेणाथ हरीतकीना
मैकध्यमालोय शनैस्तु दर्या
ज्ञात्वा सुपकं रसगन्धवर्णैः
कुम्भे निदध्यात्त्रिसुगन्धियुक्तम् ॥ प्रस्थार्द्धयुक्तं मधुनोऽत्र शीते
भल्लातकास्थिमभवाच तैलात् ।
दत्त्वा पलार्द्ध यात्रशुकजस्थ
चाष्टौ पलान्येव सितोपलायाः ॥ एनं लिहेदक्षफलप्रमाण
शौविकारी प्रसमीक्ष्य वह्निम् ।
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[ ३२५ ]
कुष्ठानि सर्वाणि निहन्ति हिक्कां श्वासञ्च कासारुचिपाण्डुरोगान् ॥ मन्दानत्वं ग्रहणीविकारान्
गुल्मान्स शोफानुदरामयांश्च । शूलानि यक्ष्माणमसृप्रवृत्तिं
पथ्यsasisयमिति प्रदिष्टः ॥ निसोत, गिलोय, आमला और चीता १००, १०० पल ( हरेक ६ । सेर) लेकर सबको पृथक् पृथक् कूटकर २--२ द्रोण ( ६४-६४ सेर ) पानी में पृथक् पृथक् लोहपात्र में मन्दाग्नि पर पकावें । जब चौथा भाग पानी शेष रह जाय तो छानकर सब काथों को एक जगह मिला लें और फिर उसमें १०० पल ( ६ । सेर) गुड़ मिलाकर सफेद वस्त्र में छानकर उसे पुन: पकायें । जब अवलेह के समान गाढ़ा हो जाय तो उसमें जीरा, कालाजीरा, दन्तीमूल, पाठा, निसोत, सोंठ, मिर्च, पीपल, पीपलामूल, धनिया, अजमोद, गजपीपल, अजवायन और शुद्ध भिलावेका चूर्ण ५, ५ तोले तथा ३ प्रस्थ ( ३ सेर ) हर्रका चूर्ण मिलाएं | एवं शीतल होने पर उसमें दालचीनी, तेजपात और इलायचीका समभाग मिश्रित ( ५ तोले ) चूर्ण तथा १ सेर शहद और २ || तोले भिलावे के बीजोंका तैल एवं २|| तोले जवाखार और ४० तोले खांड मिलाकर रक्खें ।
इसमें से नित्य प्रति बहेड़ेके फल के बराबर ( १ तोला ) या अग्निबलानुसार न्यूनाधिक मात्रामें सेवन करनेसे अर्श, कुए, हिचकी, स्वास, खांसी, अरुचि, पाण्डु, अग्निमांद्य, ग्रहणी, गुल्म, शोथ, उदररोग, शूल, यक्ष्मा और रक्तस्रावका नाश होता है ।
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