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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हमकरणम् ] हरेको पीसकर तेल, घी, और शहद में मिलाकर चाटने से दाह, ज्वर, खांसी, रक्तपित्त, वीसर्प, श्वास और वमनका नाश होता है । (हर्रका चूर्ण ३ माशे, घी ३ माशे, तैल ३ माशे, शहद १ तोला ) (४०१९) पथ्यावलेह: ( ग. नि. । लेहा.; वृं. मा. । अर्शो. ) श्यामागुडूच्यामलक चित्रकाणां पादावशिष्टं विधिवद्विधिज्ञः । भागान् पलानां शतसम्मितांश्च । सर्वान् पृथक् सम्परिकल्प्य युक्त्या द्रोणद्रयेऽपां तु विपाच्य पात्रे || लौहे दृढ़े मन्दहुताशनेच भूयः पचेत्तं तुलया गुडस्य शुक्रेन वस्त्रेण विशोधितस्य ॥ चूर्णीकृतैर्जीरकयुग्मदन्ती पाठात्रित्त्र्यूषणग्रन्थिकाद्वैः । भल्लातकाख्यैश्च पलप्रमाणेः ॥ तृतीयो भागः । धान्याजमोदेभकणायवानी www.kobatirth.org प्रस्थत्रयेणाथ हरीतकीना मैकध्यमालोय शनैस्तु दर्या ज्ञात्वा सुपकं रसगन्धवर्णैः कुम्भे निदध्यात्त्रिसुगन्धियुक्तम् ॥ प्रस्थार्द्धयुक्तं मधुनोऽत्र शीते भल्लातकास्थिमभवाच तैलात् । दत्त्वा पलार्द्ध यात्रशुकजस्थ चाष्टौ पलान्येव सितोपलायाः ॥ एनं लिहेदक्षफलप्रमाण शौविकारी प्रसमीक्ष्य वह्निम् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ३२५ ] कुष्ठानि सर्वाणि निहन्ति हिक्कां श्वासञ्च कासारुचिपाण्डुरोगान् ॥ मन्दानत्वं ग्रहणीविकारान् गुल्मान्स शोफानुदरामयांश्च । शूलानि यक्ष्माणमसृप्रवृत्तिं पथ्यsasisयमिति प्रदिष्टः ॥ निसोत, गिलोय, आमला और चीता १००, १०० पल ( हरेक ६ । सेर) लेकर सबको पृथक् पृथक् कूटकर २--२ द्रोण ( ६४-६४ सेर ) पानी में पृथक् पृथक् लोहपात्र में मन्दाग्नि पर पकावें । जब चौथा भाग पानी शेष रह जाय तो छानकर सब काथों को एक जगह मिला लें और फिर उसमें १०० पल ( ६ । सेर) गुड़ मिलाकर सफेद वस्त्र में छानकर उसे पुन: पकायें । जब अवलेह के समान गाढ़ा हो जाय तो उसमें जीरा, कालाजीरा, दन्तीमूल, पाठा, निसोत, सोंठ, मिर्च, पीपल, पीपलामूल, धनिया, अजमोद, गजपीपल, अजवायन और शुद्ध भिलावेका चूर्ण ५, ५ तोले तथा ३ प्रस्थ ( ३ सेर ) हर्रका चूर्ण मिलाएं | एवं शीतल होने पर उसमें दालचीनी, तेजपात और इलायचीका समभाग मिश्रित ( ५ तोले ) चूर्ण तथा १ सेर शहद और २ || तोले भिलावे के बीजोंका तैल एवं २|| तोले जवाखार और ४० तोले खांड मिलाकर रक्खें । इसमें से नित्य प्रति बहेड़ेके फल के बराबर ( १ तोला ) या अग्निबलानुसार न्यूनाधिक मात्रामें सेवन करनेसे अर्श, कुए, हिचकी, स्वास, खांसी, अरुचि, पाण्डु, अग्निमांद्य, ग्रहणी, गुल्म, शोथ, उदररोग, शूल, यक्ष्मा और रक्तस्रावका नाश होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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