________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[३२६]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
-
(४०२०) पनकादिलेहः
(४०२३) पाचकावलेहः (ग. नि. । कासा.; च. सं. । चि. अ. २२ कासा.) (रसायनसार । ज्वरा.) पमकं त्रिफला व्योष विडङ्ग सुरदारु च। । सेटोन्मिते निम्बुरसे पदद्यात् बला रास्ना च तुल्यानि सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत्॥ तदर्धशम्पाकमहर्द्वयं ज्ञः। सर्वैरेभिः समैर्भागैः पृथक् क्षौद्रं घृतं सिता। पटेन शुद्धेन ततः प्रगाल्य लियालेहं विमथ्यैतत्सर्वकासहरं शिवम् ॥
ददीत चूर्ण दशकस्य चास्य ॥ ___ पनाक, हर, बहेड़ा,आमला, सोंठ,मिर्च, पीपल,
तनुत्वचानागरवेल्लकृष्णाबायबिडंग, देवदारु, खरैटी और रास्ना समान
वाही वयःस्था द्वयकर्षभागाः। भाग लेकर चूर्ण बनावें फिर इस सब चूर्णके बराबर सिन्धृद्भवं शूलह कृण्णवीजं शहद तथा इतना इतना ही घी और खांड लेकर
श्वेतं नवं जीरकमक्षकर्षाः॥ सबको एकत्र मिलाकर मथलें।
आज्येन भृष्टे ननु हिङ्गुजीरे इसके सेवन से हर प्रकारकी खांसी नष्ट
नदीरजः स्वेव च कृष्णवीजम् । होती है। ( मात्रा-१ तोला ।)
सङ्कुटय सर्वे पटगालितश्च
विनीय लेहं निदधीत पात्रे । (४०२१) पद्मकेसरयोगः
मन्दानिमालस्यमपाकरोति (वृ. नि. र. । अर्श.)
___ करोति शुद्धिं जठरस्य पुंसाम् सपद्मकेसरक्षौद्रनवनीतं नवं लिहन् । स्वादिष्टवर्यो ननु लेहराजो सिताकेसरसंयुक्तं रक्तार्शी सुसुखी भवेत् ॥
रुचिपदो भोजनसन्निधाने ॥ कमलकेसर, मधु, नवनीत ( नौनी घी ), मिश्री | पञ्चकर्षा यदि द्राक्षा तावानेव रसो भवेत् । और नागकेसर के चूर्णको एकत्र मिलाकर सेवन । पकदाडिमवीजानां स्वादः सौम्यश्च जायते ॥ करनेसे रक्तार्श नष्ट होती है।
___ अर्थ-नीबूके १ सेर रसमें आधसेर अमल(४०२२) पलाशवृन्तयोगः
| तासकी फलियोंको कूटकर डाल दें, दो दिन तक (ग. नि. । रक्तपि.)
भीगने के बाद धुले हुवे वस्त्रमें डाल कर हिला पलाशवृन्तस्वरसं प्रपीडय विधिवच्छ्रतम् ।। हिलाकर छान लें । यह उत्तम खटाइ बन गइ । तल्लिह्यान्मधुसंयुक्तं रक्तपित्तनिवारणम् ॥ इसमें आगे लिखी हुइ दश चीजेांके कपड़छन
पलाशके डण्ठले के स्वरस को अग्निपर गाढा चूर्णको डाल दें। दालचीनी, सेठ, कालीमिरच, करके उसमें शहद मिलाकर पीनेसे रक्तपित्त नष्ट | छोटी पीपल, हींग, छोर्टी अथवा बड़ी इलायचीके होता है।
दाने । यह छः चीजें २-२ तोले लें। और सेंधा
For Private And Personal Use Only