Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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हमकरणम् ]
तृतीयो भागः ।
[ ३३५ ]
जटामांसी, तालीसपत्र, कमल गट्टेकी गिरी, नीलो । जातीकोषफले च षट्कटुसटीद्राक्षावरावानरीचातुर्जाततुगाब्दधान्यमुसलीदीप्याजयष्टीक्षु
त्पल, बंसलोचन, सिंघाड़ा, जीरा, बिदारीकन्द, गोखरू, शतावर, मालतीपुष्प और आमला | प्रत्येक १ - १ | तोला ।
इन सब चीजोंका चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह आलोडन करें । जब पाक ठंडा हो जाय तो उसमें २|| तोले कपूर मिला कर चिकने पात्र में भरकर रखदें ।
इसे नित्य प्रति प्रातः काल ६ माशेकी मात्रानुसार सेवन करने से छर्दि, अम्लपित्त, हृदयकी दाह, भ्रम, मूर्छा, सर्व प्रकारके शूल, आमवात, प्रमेह, मेद, प्लीहा, पाण्डु, पथरी, मूत्रकृच्छ्र और गुदमार्गसे रक्त जाना इत्यादि रोग नष्ट होते हैं ।
यह वीर्यवर्धक, हृदयके लिये हितकारी पौष्टिक और कामशक्तिवर्द्धक है ।
इसके सेवनसे बन्ध्या स्त्रीको पुत्र प्राप्ति होती है और वृद्ध पुरुष पुनः युवाके समान हो जाता है
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( नोट - कपूरेको थोड़े से घी में मिलाकर डालना चाहिये । )
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जावित्री, जायफल, पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सोंठ, काली मिर्च, सटी ( कचूर), दाख इससे उत्तम वाजीकरण औषध अन्य कोई ( मुनक्का ), हर्र, बहेड़ा, आमला, कांचके बीज, नहीं है।
दालचीनी, तेजपात, इलायची, नागकेसर, बंसलोचन, नागरमोथा, धनिया, मूसली, कालाजीरा, मेढासिंगी, मुलैठी, तालमखाना, अश्मा ( शिलाजीत ), कपूर, बला (खरैटी), अतिबला (कंधी), नागबला (गंगेरन ), गजपीपल, जटामांसी, शतावर, मेथी, सिंघाड़ा, सौंफ, सफेदजीरा, सुगन्ध बाला, भांग, गोखरु, खजूर, आमला, भलका गोंद ( या मूसली), बेर, चोरक, धतूरेके बीज
(४०४०) पूगपाकः ( वृहत् )
( वृ. यो. त. । त. १०३ ) पच्यात्पूगरजो दशाश्रममलं मार्दे कटाहेऽग्निना भेदेनाष्टगुणे पयस्यापि घृतप्रस्थार्धकेऽस्मि -
न्घने ।
रम् ॥ ramrita aarti करिकणामांसीव रीमेथिकाशृङ्गाटं मिशिजीरवारिविजयागोक्षुरखर्जूरकम् । धात्री शाल्मलि कोलचोरकनकं कुम्भत्रिनेत्राभ्रकं पृथ्वीका भयवङ्गदेवकुसुमं दद्यात्पृथक् कार्षिकम् ॥ पञ्चाशत्पलखण्डपाकललितः स्यात्पूगपाकःपृथुवृष्यः पाण्ड्यहरः प्रमेहदलनो रेतोविवृद्धिमदः। पित्ताको प्रदरे क्षये करपदे दाहेऽम्लपित्ते वधुदहे पाण्डुगदे हुताशनहतावेतेषु शस्तो मतः॥
दश पल ( ५० तोले) सुपारीके चूर्णको १० सेर दूधमें मिट्टीके पात्रमें पकावें । जब खोवा (मावा) हो जाय तो उसे १ सेर ( ८० तोले ) घी में भून लें। और फिर ५० पल ( ३ सेर १० तोले ) खांड की चाशनी बनाकर उसमें यह खोवा तथा निम्न लिखित ओषधियांका चूर्ण मिलावें ।
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