Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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घृतप्रकरणम् ]
मृतीयो भागः।
[३३९]
क्षीरमस्थेन तत्सपिहन्ति गुल्मं कफात्मकम् । गायके गोबरका रस, गायका खट्टा दही, महणीपाण्डुरोगघ्नं प्लीहकासज्वरापहम् ॥ गायका दूध, गोमूत्र और गायका घी बराबर कल्क----पीपल, पीपलामूल, चव, चीता,
बराबर लेकर एकत्र मिलाकर पकावें । जब घृतसेठ और यवक्षार ५-५ तोले ।।
मात्र शेष रह जाय तो छान लें। २ सेर घीमें यह कल्क; २ सेर दूध और
इसके सेवनसे चातुर्थिक (चौथिया ) ज्वर, ८ सेर पानी मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र शेष
उन्माद और अपस्मार नष्ट होता है । रह जाय तो उसे छान लें ।
(४०४९) पञ्चगव्यं घृतम् (२) यह घृत कफजगुल्म, संग्रहणी, पाण्डु, प्लीहा, (सु. सं. । उ. त. अ. ३९) खांसी और ज्वरका नाश करता है।
गव्यं दधि च मूत्रश्च क्षीरं सर्पिः शकृद्रसः । (मात्रा--१ तोला।)
समभागानि पाच्यानि कल्कांश्चैतान्समावपेत् ॥ (४०४७) पञ्चकोलाचं घृतम् (२) । त्रिफलां चित्रकं मुस्तं हरिद्रे द्वे विषां वचाम् ।
(. मा.; वं. से.; च. द. । शोथा.) विडङ्गं त्र्यूषणं चव्य सुरदारु तथैव च ॥ रसे विपाचयेत्सर्पिः पञ्चकोलकुलत्थयोः। | पश्चगव्यमिदं पानाद्विषमज्वरनाशनम् ॥ पुनर्नवायाः कल्केन घृतं शोथविनाशनम् ।। गायफा दही, मूत्र, दूध, घी और गोबरका
काथ-पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, रस २-२ सेर तथा निम्न लिखित ओषधियों का सोंठ और कुलथ समान--भाग-मिश्रित २ सेर कल्क २० तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर लेकर अधकुटा करके १६ सेर पानीमें पकावें । | पकावें । जब धृतमात्र शेष रह जाय तो छान लें । जब ४ सेर पानी शेष रहे तो छानकर उसमें १ कल्क हर, बहेड़ा, आमला, चीता, नागरसेर घी और ६ तोले ८ माशे पुनर्नवा (बिसख- | मोथा, हल्दी, दारुहल्दी, अतीस, बच, बायबिपरा) का कल्क मिलाकर पुनः पकावें । जब क्वाथ डंग, सांठ, मिर्च, पीपल, चव और देवदारु । जल जाय तो घीको छान लें ।
यह घृत विषमज्वरको नष्ट करता है। इसके सेवनसे शोथ नष्ट होता है।
( मात्रा--१ तोला) ( मात्रा--१ तोला ।)
(४०५०) पञ्चगव्यं घृतम् (३) (४०४८) पञ्चगव्यं घृतम् (१) (स्वल्प) (र. र. । अपस्मारा.; च. सं. । चि. अ.
( ग. नि. । घृता.१; सु. सं. । उ. त. अ. ६१) १५ अपस्मा.)
दशमूलेन्द्रवृक्षत्वङ्यूर्वाभार्गीफलत्रयैः । गोशकद्रसदध्यम्लक्षीरमूत्रैः समैघृतम् ।
शम्पाकश्रेयसीसप्तपणापामागेफल्गुभिः॥ सिद्धं चातुर्थिकोन्मादसर्वापस्मारनाशनम् ॥ । १-पीलुभिरिति पाठान्तरम् ।
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