Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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तृतीयो भागः ।
घृतमकरणम् ]
पृश्निपर्णी), चोरहोली, कुटकी, संभालु, बाराहीकन्द, सौंफ, सोया, गूगल, सतावर, गिलोय ( या माझी ), दोनों प्रकारकी रास्ना, प्रसारणी, बिछाती और शालपर्णी ।
इनके कल्क और काथके साथ घृत सिद्ध करें ।
काथके लिये - सब चीजें समान -भागमिश्रित ६ | सेर | पानी ३२ सेर । शेष काथ ८ सेर |
ककके लिये - सब चीजें समान -भागमिश्रित १३ तोले ४ माशे लेकर पानीके साथ पीस लें ।
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यह घृत चातुर्थिक ज्वर, उन्माद और महापस्मार नाशक तथा बुद्धि, मेधा और स्मृति - वर्द्धक एवं बालकोंकी शरीरवृद्धि करने वाला है । (४१०६) प्रपौण्डरीकार्थं घृतम् (१) (बृ. मा.; च. द. | व्रण. ) प्रपौण्डरीकमञ्जिष्ठामधुकोशीरपद्मकैः । सहरिद्रैः कृतं सर्पिः सक्षीरं व्रणरोपणम् ॥
काथ- पुण्डरिया, मजीठ, मुलैठी, स्वस, पद्माक और हल्दी समान -भाग- मिश्रित ४ सेर
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लेकर ३२ सेर पानीमें पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो छान लें ।
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कल्क – उपरोक्त समस्त चीजें समान भाग मिश्रित १३ तोले ४ माशे लेकर सबको पानीके साथ पीस लें ।
विधि --- काथ, कल्क और २ सेर दूध तथा २ सेर घृतको एकत्र मिलाकर पकावें जब घृतमात्र शेष रह जाय तो छान लें ।
(४१०७) प्रपौण्डरोकार्थं घृतम् (२) ( वं. से. । मुखरो. )
काथ, कल्क और २ सेर घृतको एकत्र प्रपौण्डरीकमधुकत्रिफलोत्पलसाधितम् । मिलाकर पकावें ।
तैलं घृतं वा वातघ्नं शीतादेः संप्रशस्यते ॥
यह घी ( लगाने और खानेसे ) व्रण भर जाते हैं ।
पुण्डरिया, मुलैठी, हर्र, बहेड़ा, आमला और नीलोत्पल के काथ तथा कल्कसे सिद्ध तैल या घृत शीताद आदि मसूढ़ों के रोगों में हितकर है । यह Sagar है।
काथके लिये- सब चीजें समान - भागमिश्रित ४ सेर । पाकार्थ जल ३२ सेर । शेष काथ ८ सेर । 1 कल्क के लिये -- सब चीजें समान भाग मिश्रित १३ तोले ४ माशे ।
सबको २ सेर घीमें मिलाकर पकावें ।
इति पकारादिष्टतमकरणम् ।
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