Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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लेपप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[३८९]
क्षीरकाकोली, सारिवा, तेजपात, मजीठ और कर घी और शहद में मिलाकर योनि में लेप करने मुलैठी के समान-भाग-मिश्रित महीन चूर्ण को से स्त्री कभी गर्भवती नहीं होती। बकरी के दूध में मिलाकर जरा गर्म कर के लेप (४१८०) पलाशबीजादिलेपः करने से आंखों की पीड़ा और लाली नष्ट होती है।
(वं. से. । विषरोगा.) (४१७७) परूषकादिलेपः
अर्कक्षीरेण सम्पिष्टं लेपाद्वीजं पलाशजम् । (वृ. मा.। स्त्रीरो.)
वृश्चिकार्ति हरेत् कृष्णा सशिरीषफला तथा ॥ परूपकशिफालेपः स्थिरामूलकृतोऽथवा। ढाक (पलाश) के बीजों को आक के दूध में नामिवस्तिभगायेषु मूढगर्भापकर्षणः ॥ पीसकर या पोपल और सिरस के बीजों को (पानी ___ फालसे या शालपर्णी की जड़ को पीसकर के साथ) पीसकर लेप करने से बिच्छू के दंश की नाभि, बस्ति और भग आदि में लेप करने से मूढ- पीड़ा नष्ट हो जाती है । गर्भ निकल आता है।
(४१८१.) पलाशादिलेपः (१) (४१७८) पलाशफलादिलेपः
(यो. र.; च. द. । ज्वरा.) (वं. से.; यो. र. । स्त्री.)
अम्लपिष्टैः सुशीतैर्वा पलाशतरुजैव्हेित् । पलाशोदुम्बरफलं तिलतैलसमन्वितम् । बदरीपल्लवोत्थेन फेनेनारिष्टकस्य च ॥ मधुना योनिमालिप्य गाढीकरणमुत्तमम् ॥ कालेयचन्दनानन्तायष्टीवदरकाञ्जिकैः ।
__ ढाक (पलास ) और गूलर के फलों को पीस | सघृतैःस्याच्छिरोलेपस्तृष्णादाहार्तिशान्तये ॥ कर तिल के तैल से चिकना कर के शहद में मिला- पित्तज्वर में तृष्णा, दाह और वेचैनी हो तो कर लेप करने से योनि की शिथिलता नष्ट हो निम्न लिखित प्रयोगों में से किसी एक का शिरजाती है।
पर लेप करना चाहिये। (४१७९) पलाशबीजलेपः
(१) ढाक के फूलों को कांजी में पीसकर (रा. मा. । स्त्री रो. ३०; यो त. । त. ७५) | लेप करें। ऋतौ घृतक्षौद्रयुतैः पलाश
(२) बेरी या नीम के पत्तों को काञ्जी में बीजैः प्रलेपं ममृणमपिष्टैः। पीसकर उन्हें हाथों से मलकर और थोड़ी सी काजी करोति या स्त्री भगरन्ध्रमध्ये
में खूब आलोडन कर के झाग उठावें और इन . न सा भवेद् गर्भवती कदाचित् ॥ झागों का लेप करें। __ ऋतुकाल (मासिक धर्म होने के दिनों) में | (३) दारुहल्दी, चन्दन, अनन्त मूल, मुलैठी, पलाश ( ढाक ) के बीजों को खूब महीन पीस | और वेर । समान भाग लेकर सब को कांजी के
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