Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य - रत्नाकरः ।
[ ३३४ ]
पाण्डु वलवर्णदृष्टिकरणं गर्भमदं योषितामेतत् पूगरसायनं प्रदरनुद् विण्मूत्रसङ्गापहम् ॥
सुपक उत्तम सुपारीके छोटे छोटे टुकड़े करके उन्हें जलमिश्रित दूधमें पकार्वे और फिर उन्हें गानी से धोकर धूप में सुखा कर चूर्ण करलें ।
तत्पश्चात् आठ पल (४० तोले) इस चूर्णको ४० तोले घीमें भूनें और फिर उसमें ४०-४० तोले सतावर और आमलेका रस, ४ सेर दूध और ३ सेर १० तोले खांड मिलाकर मन्दाग्निपर पकायें । जब अवलेह तैयार हो जाय तो उसमें निम्न लिखित चीजेांका चूर्ण मिलावेंः——नागकेसर, नागरमोथा, सफेद चन्दन, सोंठ, मिर्च, पीपल, आमला, चिरौंजी, दालचीनी, तेजपात, इलायची, दोनों जीरे सिंघाड़ा, बंसलोचन, जावित्री, जायफल, लौंग, धनिया, कंकोल, रास्ना, तगर, सुगन्धवाला, खस, भंगरा और असगन्ध २॥ २॥ तोले ।
इन सब चीजोंका चूर्ण मिलाकर थोड़ी देर करछी से चलायें और फिर चिकने पात्र में भरकर रख दें।
इसके सेवन से शूल, अजीर्ण, गुदासे रक्त आना, कष्ट साध्य अम्लपित्त, तृष्णा, छर्दि, मूर्च्छा, पाण्डु और मल तथा मूत्रका अवरोध आदि रोग नष्ट होते हैं ।
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यह जराहर, वृष्य, अग्निवर्द्धक, बलवर्णको बढ़ानेवाला, दृष्टिको तीक्ष्ण करनेवाला और गर्भप्रद तथा यक्ष्माके रोगी और क्षीण पुरुषों के लिये हितकारी है ।
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[ पकारादि
(४०३९) पूगखण्ड : (अपर ) (२) ( भै. र. । शूला. )
प्रस्यैकं पूगचूर्णस्य पयसश्चाढकं क्षिपेत् । शर्करायाः पलशतं घृतस्य कुडवद्वयम् ॥ मांसी तालीसपत्रञ्च बीजं कमलसम्भवम् ॥ चातुर्जातं त्रिकटुकं देवपुष्पं सचन्दनम् । नीलोत्पलं तथा बांशी शृङ्गाटं जीरकं तथा । विदारीकन्दजश्चैव रजो गोक्षुरसम्भवम् ।। शतमूलीरजश्चैव मालतीकुसुमं तथा । धात्रीचूर्ण समं कर्षे कर्पूरं शुक्तिमानतः ॥ मन्देऽग्नौ विपचेद् वैद्यः स्निग्वेभाण्डे निधापयेत् । खादेच्च प्रातरुत्थाय कोलमेकं प्रमाणतः ॥ छर्ब्रम्लपित्तहृद्दाहभ्रममूर्च्छापहं नृणाम् । सर्वशूलहरं श्रेष्ठमामवातविनाशनम् ॥
मेदोविकार लीहपाण्डुगदापहम् । अश्मरीं मूत्रकृच्छ्रश्च गुदजं रुधिरं जयेत् ॥ रेतोवृद्धिकरं हृद्यं पुष्टिदं कामदं तथा । वन्ध्यापि लभते पुत्रं वृद्धोपि तरुणायते ।। नातः परतरं श्रेष्ठं विद्यते वाजिकर्मसु ॥
१ सेर सुपारीके चूर्णको ८ सेर दूध में पकावें । जब खोवा (मावा ) हो जाय तो उसे १ सेर घी में भूनें और फिर ६ सेर खांड की चाशनी करके उसमें यह खोवा (मावा) और निम्न लिखित चीजांका चूर्ण मिलावें:
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दालचीनी, तेजपात, इलायची, नागकेसर, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, लौंग, सफेद चन्दन,