Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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हमकरणम् ]
हतीपो भागः।
[३२७ ]
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नोन, कालानोन, कालादाना ( जिसको जुलाबके | यह चटनी जिसकी जिहापर लग जायगी उसको लिये जमालगोटेकी जगह वैध तथा डाक्टर लिया | किसी चूर्णकी आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी। करसे हैं । यह सभी शहरों में पंसारीकी दूकान पर यह अवलेह कुछ गरम होता है इस लिये मिल जाता है । ), नवीन सफेदजीरा (जिसका | ५ तोले दाखको नीबूके रसके साथ शिलपर पीसदाल शाकमें छांक लगता है ) । यह चारों चीजें कर कपरछन करके अवलेहमें डाल दें। ओर पके ५-५ तोले लें । हींग और जीरेको मन्दी मन्दी | हुवे अनारके दानोंका रस भी डाल दें तो ये सब आंचसे धीमें भून लें और काले दानेको लोहेके | गरमी को शान्त करके स्वाद बढ़ा देंगे । ( यह तसलेमें, चलनीसे छानी हुइ रेतमें डालकर चूल्हे | स्मरण रहे कि इस अवलेहको मिट्टी, पत्थर, चीनी, पर रखकर मन्द मन्द आंच दें और जब दाने | कांच, काष्ठ आदिके पात्रमें बनावें । अर्थात् पीतल, खिलने लगें और “ पटपट " शब्द करने लगे। कांसी आदि किसी धातुका संपर्क न होने दें, तब तुरन्त तसलेको उतारकर उसमें की रेत और | नहीं तो अवलेहका स्वाद बिगड़ जायगा और काले दानेको चलनीमें डालकर हिलावें । ऐसा | चाटते ही चित्त खराब हो जायगा । जिसको करनेसे बालू छनकर सब निकल जायगी और | नोनका जियादे अभ्यास है वह अधिक भी कालादाना चलनीमें रह जायगा । हींग, जीरा | डाल ले ।) (रसायनसारसे उद्धृत) और काला दाना इनको शिलपर खूब पीस डालें
(४०२४) पाषाणभेदपाक: बाकी ऊपर लिखी सात चीज़ोंको लोहेके खरल में कूटकर कपरछन कर लें । सब चूर्णको ऊपर (यो. र.; वृ. नि. र. । अश्मरी.) कही हुई खटाई में मिलानेसे बहुत स्वादु पाचका- अश्मभेदात्मस्थमेकं चूर्णितं वस्त्रगालिप्तम् । वलेह ( पाचक चटपटी चटनी ) बन जाता गव्ये दुग्धाढके क्षिप्त्वा पाचयेन्मृदुवहिना ॥ है। इसकी खूराक ३ माशेसे १ तोले तककी है। दा सम्मदेयेत्तावद्यावद्घनतरं भवेत् ।
इसके चाटनेसे मन्दाग्नि और आलस्य दूर | एला लवङ्गमगधा यष्टीमध्वमृताऽभया ॥ हो जाते हैं । रात्रिको चाटकर सोनेसे प्रातःकाल | कौन्ती श्वदंष्ट्रा वृषकं शरपुछा पुननेवा। दस्त साफ हो जाता है । चित्त खूब प्रसन्न यावश्कोऽनिलघ्नश्च मांसी सप्ताङ्गुलात्पलम् । रहता है । भोजनमें यदि रुचि नहीं होय तो दो वर्ष लोहं तथाऽभ्रं च कपूर पर्पटें शटी। घण्टे पहिले चाटनेसे भोजनमें रुचि हो आती है। पत्रेभकेसरं त्वक् च संशुद्धं च शिलाजतु ॥ प्रायः बुखारमें मुखका स्वाद बिगड़ा रहता है, । पृथगर्दपलं चूर्ण चूर्णिता सितशर्करा । इसके चाटनेसे वह दोष दूर हो जाता है । आज- | सार्द्धप्रस्थमिता ग्राखा दुग्धे वै लेखतां नयेत् ।। कल सभी लोगोंको नमक सुलेमानो, भास्करलवण | सर्व तमिक्षिपेत्तत्र स्वाइशीतलतां नयेत् । आदि पाचक चूर्णको आवश्यक्ता पड़ती है, परन्तु । मधुनः प्रस्थमेकं दद्यालिग्धभाण्डे विनिक्षिपेत्।।
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