Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चूर्णपकरणम् ] तृतीयो भागः।
[३०३] पीपल, पीपलामूल, चीता, जीरा और सेंधा । कृमिकण्ड्वरुचिहरं सुरयोष्णोदकेन वा । नमक समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । नातः परतरः किश्चिदामशोथनिषूदनम् ॥
इसे मद्यके साथ सेवन करने से दुस्साध्य पीपल, पीपलामूल, सेंधा नमक, कालाजीरा, गुल्म भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। | चव, चीता, तालीसपत्र और नागकेसर; हरेक ( मात्रा-२-३ माशे ।)
१०-१० तोले । सञ्चल ( काला नमक ) २५ (३९४८) पिप्पल्यादिचूर्णम् (५)
तोले; काली मिर्च, जीरा और सांठ ५-५ तोले, (शा. ध. । खं. २ अ. ६)
अनारदाना २० तोले तथा अमलबेत १० तोले
लेकर सबको कूटकर चूर्ण बनावें । कर्षमात्रा भवेत्कृष्णा त्रिता स्यात्पलोन्मिता। खण्डात् पलं न विज्ञेयं चूर्णमेकत्र कारयेत् ॥
इसके सेवनसे अग्नि दीप्त होती तथा अर्श, कोंन्मितं लिहेदेतत्क्षौद्रेणाध्माननाशनम् ।
ग्रहणी, उदररोग, गुल्म, भगन्दर, कृमि, कण्डू गाढविट्कोदरकफान् पित्तशूलश्च नाशयेत् ॥ ।
| और अरुचि नष्ट हो जाती है ।
आमशोथके लिये इससे उत्तम अन्य एक भी पीपल ११ तोला, निसोत ५ तोले और
प्रयोग नहीं है। खांड ५ तोले लेकर चूर्ण बनावें।
अनुपान-सुरा या उष्ण जल । ___इसमेंसे १। तोला चूर्ण शहदके साथ चाट | ( मात्रा–२--३ माशे।) नेसे आध्मान ( अफारा ), गाढविट्कता (मलका | (३९५०) पिप्पल्यादिचूर्णम् (७) कठिन होना ), उदररोग और पित्तशूलका नाश
(वृ. नि. र. । बालरोग.) होता है।
पिप्पली मधुकं जम्बूरसालतरुपल्लवाः। (३९४९) पिप्पल्यादिचूर्णम् (६)
चूर्णोऽयं मधुना चेति तृष्णाप्रशमनः शिशोः ॥ ( वं. से.; वृ. नि. र. । कृमि.; भा. प्र. । आमवात.
पीपल, मुलैठी तथा आम और जामनके पिप्पली पिप्लीमूलं सैन्धवं कृष्णजीरकम् ।
पत्ते समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । चव्यचित्रकतालीसपत्रकं नागकेसरम् ॥
इसे शहदके साथ चटानेसे बालकोंकी तृषा
| ( भड़क ) शान्त होती है। एषां द्विपलिकान्भागान् पश्च सौवर्चलस्य च ।।
( मात्रा--४ रत्तीसे १ माशा तक ।) मरिचाजाजिशुण्ठीनामेकैकस्य पलं पलम् ॥ दाडिमात्कुडवश्चैव द्वे पले चाम्लवेतसात् । । (२९५
(३९५१) पिप्पल्यादिचूर्णम् (८) सर्वमेकत्र संक्षुध योजयेत्कुशलो भिषक् ॥ | (वृ. नि. र. । बालरो.) पिप्पल्याघमिदं ख्यातं नष्टवड्नेः प्रदीपनम् । | पिप्पलीविजयाशुण्ठीचूर्ण मधुयुतं भिषक् । अशौसि ग्रहणी गुल्ममुदरं सभगन्दरम् ॥ दत्त्वा निहन्त्युग्रग्रहणीरुजं कीर्तिमवाप्नुयात् ।।
For Private And Personal Use Only