Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[३०६] भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[पकारादि एतानि समभागानि मधुना सह लेहयेत् । षड्भागाः सैन्धवस्योक्तास्तथाों हिङ्गुतः अरोचके श्लेष्मभवे प्रधान मुखधावनम् ॥
स्मृतः। पीपल, पीपलामूल, काली मिर्च, हरी, सोंठ, | निस्तुपानां विडङ्गानामेको भागः प्रकीर्तितः ॥ जवाखार, लोध और चव समान भाग लेकर | तत्सर्वमेकतः कृत्वा सूक्ष्मचूर्णन्तु कारयेत् । चूर्ण बनावें।
लवणं दीपनमिदं वातश्लेष्मविकारनुत् ॥ ___इसे शहदमें मिलाकर चाटनेसे कफज अरुचि
रुच्यमन्नेन संयुक्तं केवलं वा हितं तथा ॥ नष्ट होती है।
पीपल ४ भाग, सञ्चल ( काला नमक ) कफज अरुचिमें बार बार मुख-प्रक्षालन ! पाच भाग, जीरा और सेठ ३-३ भाग, काली करना लाभदायक है।
मिर्च ७ भाग, अनारका रस ( शुष्क ) अथवा ( मात्रा-१ माशा । दिनमें कई बार सेवन | अनारका सत ७ भाग, तिन्तडीक २ भाग, अम्लकरना चाहिये । )
बेत ४ भाग, सेंधा नमक ६ भाग तथा आधा
भाग हींग और १ भाग बायबिडंगके चावल, (३९६२) पिप्पल्याचं चूर्णम् (३)
(गिरी) लेकर सबको कूट छानकर चूर्ण बनावें । (ग. नि.; वै. जी. । कासा.)
. इसे भोजनके साथ ( अन्नमें मिलाकर ) पिप्पली पिप्पलीमूलं नागरं सविभीतकम् । या पृथक् ( गरम पानीके साथ ) खानेसे वातलीडं मधुयुतं चूणे कासरोगनिवारणम् ॥ कफज विकार नष्ट होते हैं । यह अग्निदीपक और पीपल, पीपलामूल, सोंठ और बहेड़ा समान
रोचक है। भाग लेकर चूर्ण बनावें।
(मात्रा १-१॥ माशा ।) ___इसे शहदके साथ चाटनेसे खांसी नष्ट | (३९६४) पिप्पल्याचं चूर्णम् (५) होती है।
(वं. से.; ग. नि. । ग्रहणी.; शा. ध. । चूर्णा.; ( मात्रा-३ माशे । दिनमें ३-४ बार
वा. भ.२ । चि. अ. १०) चाटें ।) . .
पिप्पली रहती व्याघी यवक्षारः कलिङ्गकः । (३९६३) पिप्पल्या पूर्णम् (४) चित्रकं सारिवा पाठा शठी लवणपश्चकम् ।। (ग. नि. । परिशि. चूर्णा.)
तच्चूर्ण पाययेहध्ना मुरयोष्णाम्भसापि वा।
मारुतग्रहणीदोपशमनं दीपनं परम् ॥ चत्वारि पिप्पलीनां तु पश्च सौवर्चलोद्भवाः ।।
वायविडंगको पानीकी सहायतासे जरा नम (भाई) जीरकस्य त्रयो भागाः शुण्ठया भागत्रयं तया॥
"करके बोखलीमें कूटनेसे उसके चावल निकल भाते हैं। सप्त सस स्पृता भागास्तीक्ष्णदाडिमसारयोः।। २ वाग्भटमें श्लोक भिन्न है परन्तु प्रयोग यही है। द्वौ भागौ तिन्तिडीकस्य चत्वारश्चाम्लवेतसात्।। केवल शठीके स्थानमें सेठि लिखी है।
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