Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[२९६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि पाठा और आमके वृक्षकी अन्तर्जाल समान | शठी पुष्करमूलश्च तिन्तिडीकं सदाडिमम् । भाग लेकर गायके दहीके साथ पीसकर पिलानेसे मातुलुङ्गथाश्च मूलानि मूक्ष्मचूर्णानि कारयेत्।। दाह और पीडायुक्त अतिसार शीघ्र ही नष्ट सुखोदकेन मधैर्वा चूर्णान्येतानि पाययेत् । हो जाता है।
अर्शः शूलं च हृद्रोगं गुल्मं चापि व्यपोहति ॥ (३९१८) पाठादिचूर्णम् (२)
पाठा, बच, जवाखार, हर्र, अमलबेत, धमासा, (च. सं. । चि. अ. १८ कास.) । चीता, सेांठ, मिर्च, पीपल, सेंधानमक, कालानमक, पाठां शुण्ठी शठीं मां गवाक्षी मुस्तपिप्पलीम। बिडलवण, सटी ( कचूर ), पोखरमूल, तिन्तडीक, पिष्ट्वाधर्माम्बुना हिल्सैन्धवाभ्यां युतां पिबेत् ॥ अनारदाना और बिजौरे नीबूकी जड़की छाल पाठा, सेठ, सठी ( कचूर ), मूर्वा, इन्द्रा
| समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । यणकी जड़, नागरमोथा और पीपर समान भाग
इसे मन्दोष्ण जल या मद्यके साथ सेवन लेकर चूर्ण बनावें।
करनेसे अर्श, शूल, हृद्रोग और गुल्म नष्ट इसमें थोड़ा सा हींग तथा सेंधानमक मिला
| होता है। कर उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे कफज खांसी
| ( मात्रा-२ से ४ माशे तक ।) नष्ट होती है।
(३९२१) पाठाद्यं चूर्णम् (१) (३९१९) पाठादिचूर्णम् (३)
(वं. से. । अतिसा.) (र. र. । अतिसार.)
पाठा वचा त्रिकटुकं कुष्ठं कटुकरोहिणी । पाठामोचरसं मुस्तं धातकीबिल्वनागरम् ।
उप्णाम्बुपीतान्येतानि श्लेष्मातीसारनाशनम्।। गुडतक्रयुतं पाने असाध्यमपि साधयेत् ॥
पाठा, बच, सांठ, मिर्च, पीपल, कूट और पाठा, मोचरस, नागरमोथा, धायके फूल,
| कुटकी समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । बेलगिरी और सेठ; इनके चूर्णमें समान भाग गुड़
। इसे उष्ण जलके साथ पीनेसे कफातिसार मिला कर तक्रके साथ सेवन करने से दुःसाध्य
नष्ट होता है। अतिसार भी नष्ट हो जाता है।
( मात्रा-३-४ माशे । )
(३९२२) पाठाद्यं चूर्णम् (२) ( मात्रा-३ से ६ माशे तक ।)
(वं. से.; वृ. नि. र.; भा. प्र; यो. र. । (३९२०) पाठादिचूर्णम् (४)
आमातिसा.) ( ग. नि.; वृ. नि. र. । हृद्रोगा.) पाठाहिङ्ग्वजमोदोग्रापञ्चकोलाब्दजं रजः। पाठां वचा यवक्षारमभयामम्लवेतसम् । उप्णाम्बुपीतं सरुजं जयत्यामं ससैन्धवम् ॥ दुरालभां चित्रकं च त्र्यूषणं लवणत्रयम् ॥ पाठा, हींग, अजमोद, बच, पिप्पली, पीपला
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