Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
तृतीयो भागः ।
कषायप्रकरणम् ]
(३८७३) प्रजास्थापनकषायदशकः ( च. सं. 1 सू. अ. ४ ) ऐन्द्री ब्राह्मशतवीर्यासहस्रवीर्यामोघाव्यथाशिवारिष्टाबाट्य पुष्पी विष्वकसेनकान्ता इति दशेमानि प्रजास्थापनानि भवन्ति ।
इन्द्रायन, ब्राह्मी, दूर्वा, सहस्रवीर्या (दूर्वाभेद), पाढल, आमला, हर्र, कुटकी, खरैटी और बाराही
कन्द |
यह ओषधियां प्रजास्थापक हैं ।
( इनके सेवन से स्त्री गर्भ धारण करती है।) (३८७४) प्रपौण्डरीकायाश्च्योतनम् ( ग. नि. । नेत्ररो. ३ )
1
पौण्डरीकं मधुकं हरिद्रा
छागं पयो वाऽप्यथवापि नार्याः । आरच्योतनं शर्करया विमिश्रं
पित्तानिलातेर्विनिवृत्तये तु ॥
पुण्डरिया, मुलैठी और हल्दी में से किसीका रस अथवा बकरी या स्त्रीका दूध खांड मिलाकर आंखमें डालने से पित्तज और वातज नेत्र पीड़ा शान्त होती है । (३८७५) प्रियङ्गुकादिकषायः
( ग. नि. । रक्तपि; च. स. । चि. अ. ४ रक्तपि. )
प्रियङ्गुकाचन्दनलोधसारिवा
मधूकमुस्ताभयधातकीजलम् । समृत्प्रसादं सह षष्टिकाम्बुना
सशर्करं रक्तनिबर्हणं परम् ॥ फूलप्रियङ्गु, लालचन्दन, लोध, सारिवा, मुलैठी, नागरमोथा, खस और घायके फूल । इनका
[ २८७ ]
शीतकषाय, काली मिट्टीका निथरा हुवा पानी और साठी चावल का पानी खांड मिलाकर पीनेसे रक्तपित्त नष्ट होता है । (३८७६) प्रियङ्गवादिकल्कः
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(बृ. मा.; वं. से. । बालरो; यो त । त. ७७ ) कल्कः प्रियङ्गुकोलास्थिमध्यमुस्तरसाञ्जनैः । क्षौद्रलीः कुमारस्य छर्दिस्तृष्णातिसारनुत् ॥
फूलप्रियङ्गु, बेरकी गुठली की गिरी, नागरमोथा और रसौत । समान भाग लेकर पीसकर शहद में मिलाकर चटाने से बालककी तृषा, छर्दि और अतिसार नष्ट होते हैं । (३८७७) प्रियङ्गवादिगणः
( वा. भ. । सू. अ. १५ ) भियनुपुष्पाञ्जनयुग्मपद्मापद्माद्रजोयोजनवल्ल्य
नन्ता ।
मानद्रुमो मोचरसः समङ्गा पुन्नागशीतं मदनीयहेतुः ॥ गणौ प्रियवम्बष्ठादी पकातिसारनाशनौ । सन्धानीयौ हितौ पित्ते व्रणानामपि रोपणौ ॥
फूलप्रियङ्गु, पुष्पाञ्जन, रसाञ्जन, कमलिनी, कमलिनीकी केसर, मजीठ, धमासा, सेंभलकी छाल, मोचरस, लज्जालु, नागकेसर, चन्दन और धाय के फूल । इन ओषधियोंके समूहको प्रियवादि गण कहते हैं ।
प्रियवादि तथा अम्बष्ठादि गण पकातिसार नाशक, सन्धान कारक, पित्तनाशक और घावांको भरने वाले हैं ।
इति पकारादिकषायप्रकरणम् ।
For Private And Personal Use Only